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चलते हैं लोग दुनिया में
कभी तेज, कभी चुस्त
कभी सीमाओं के अंदर,
कभी सीमाओं को पारकर
जो अंधेरे में होते हैं,
कोई सहारा नहीं जिसका
वे चलते हैं धीरे – धीरे,
सब लोग चलते हैं रोशनी में
लेकिन बहुत कम लोग
मजबूरी से रात में भी चलते हैं
भेदों को पारकर आगे बढ़ते हैं,
धूप होता है, बारिश होती है
जीवन में बसंत की शोभा होती है,
विकलता को पारकर कुछ लोग
एक भी कदम नहीं ले पाते,
जिनके पास विशाल दृष्टि होती है
वे भविष्य में दूर – दूर तक पाँव रख लेते हैं
जो आजाद होते हैं स्वयं चलने में
लोक हित में रास्ता तय करते हैं
वे अपना कुछ ईजाद़ कर पाते हैं
चलो, रुको मत, सीख मिलती है
हमें हर कदम में, चलना कैसे ?

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