पसंद नहीं है उन्हें, सहनते नहीं हैं वे
दलितों का अच्छे कपड़े पहनना
और चेस्मा लगाना, उनके जैसे
अस्मिता का जीवन बिताना,
गुलाम समझते हैं दलितों को
हीन, नीच, अधम समझते हैं वे
पुरखों से प्राप्त मूर्ख सांप्रदाय
गौरव की परंपरा मानते हैं
स्वीकार्य नहीं है समता – बंधुता
समतल पर सामाजिक जीवन
नये आविष्कारों के इस वैज्ञानिक युग में
उनकी आँखें अभी भी बंद हैं
यथार्थ से बहुत दूर अज्ञानी हैं वे
देख नहीं पाते सत्य को,
मनुष्य को इस दुनिया में
जंतु प्रवृत्ति को पारकर चल नहीं पाते
बदलती नहीं मनुवादी मानसिकता
छीनते हैं दूसरों के अधिकार
असहाय जनता पर अपनी हुकूमत
ज़बरदस्ती के साथ चलाते हैं
जाति-धर्म का अपना राजतंत्र,
जातीय अपमान से, अमानवीय व्यवहार से
अपने आपको बचाने के लिए
असमानता के इस रोग से मुक्ति के लिए
सस्ती दवा का ईजाद हम करेंगे
पीड़ित, शोषित, उपेक्षित, अपमानित,
भाइयो और बहनो ! मानववादियो !
चलो, रुको मत, पढ़ाई जारी रखो
अक्षरों का अधिकारी बन जाओ ।