पुष्पा, नाम सुनकर फ्लावर समझी क्या? फायर है मैं। अब ये फायर किसी और के लिए हो न हो मगर इस बॉलीवुड के लिए जरूर फायर बन गया है। 83 जैसी फ़िल्म भी फ्लॉप हो गई और इससे पहले बड़े बड़े एक्टर्स की फिल्में भी लाचार हो गई। मगर पुष्पा ने कोरोना काल में भी दर्शकों को सिनेमा हॉल तक खींच लाने में सफल ही नहीं रही बल्कि इसे बंपर सफलता दिला दी। जिसकी आस में हिंदी सिनेमा अपने कई फिल्मों को लेकर अब भी बड़े ललचाई नज़र से बॉक्स ऑफिस की तरफ देख रहा है। वहीं श्रेयास तलपड़े की आवाज में पुष्पा के संवादों ने भी सबको अपना दीवाना बना रखा है। पुष्पा, पुष्पराज- मैं झुकेगा नहीं। रील्स की दुनिया इसके बगैर अधूरी दिखाई दे रही है। हर बड़े सुपर स्टार से लेकर आस्ट्रेलियन क्रिकेट खिलाड़ी हीं नहीं तंजानिया के रील मेकर भी इस पर जमकर रील बना रहे हैं। तीरछी टोपी वाले की जगह तीरछे पाँव घसीटे आज डांस का पर्याय बन गया है। साउथ की फिल्में ऐसे ही यदि हिंदी डबिंग के साथ आती रहीं तो बेचारे सलमान सरीखे अन्य एक्टर्स और उन फ़िल्म निर्माताओं के लिए रीमेक का प्रचलन भी बंद होना तय है। जो रीमेक की दुनिया से ही अपना कारोबार चला रहे थे। साथ हीं अब हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग साउथ की फिल्में सीधे तौर पर देखेंगे ही नहीं बल्कि साउथ के स्टार के फैन भी होंगे। अपनी सांस्कृतिक विरासत को बिना खोये उसे प्रमुखता से फिल्मों में दिखाना साउथ की फिल्मों की विशेष पहचान है। उधर हिंदी सिनेमा में लगता है कोई विषय और मुद्दा ही नहीं रह गया है। जिस तरह से केवल हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करना, सनातन धर्म, संस्कृति और परंपरा का मज़ाक उड़ाकर अन्य धर्म विशेष की छवि को चमकाना, सेक्स, हिंसा, गाली, गे, लेसबियन आधारित फिल्मों को बनाना जिसमें नग्नता को ही येन केन प्रकारेण किसी भी प्रकार से समावेश करना ही मकसद रह गया है। अभी हालिया फ़िल्म ‘बधाई दो’ और ‘श्वेता तिवारी’ का ये बयान इसी ओर इशारा कर रहे हैं। किसी भी प्रकार की कंट्रोवर्सी कर किसी तरह से चर्चा में आना बॉलीवुड की फिल्मों का एक मात्र उद्देश्य बन गया है अपने प्रचार प्रसार का। बॉलीवुड को साउथ की फिल्मों से सीखना चाहिए कि उपरोक्त विषयों के अतिरिक्त भी फिल्में बनाई जा सकती हैं और उसे हिट भी कराई जा सकती है। साउथ में यूँ तो कई फिल्में हैं लेकिन ‘बाहुबली’ और अब ‘पुष्पा’ ने साबित कर दिया है कि बिना देवी-देवताओं के अपमान किये और एक साधारण से विषय को भी बड़ी सादगी और साफ-सुधरी फ़िल्म बनाकर भी पैसे कमाए जा सकते हैं। पुष्पा की आज की स्थिति देखकर राजेश खन्ना की फिल्म अमर प्रेम का वह संवाद याद आता है, जिसमें वे कहते हैं पुष्पा मुझसे तेरे ये आँसू देखे नहीं जाते- ‘आई हेट टीयर्स’। बॉलीवुड भी यही सोचता होगा, पुष्पा तूने मेरे आँखों में आँसू क्यों दिए…
बिल्कुल.. भ्रमजाल से दूर, सार्थक, और आज के परिवेश की सच्चाई से अवगत कराती फिल्मों की आवश्यकता है।
उत्कृष्ट समीक्षा