josh

उठो मन!अभी तुम्हें बहुत चलना है,
कदम रखकर आगे अभी और बढ़ना है।
कि अभी मंजिल न आयी है तुम्हारी
भ्रम में रहकर न रुकना है।

उठो मन! अभी तो तुम्हें फिर चलना है,
विपरीत बहती धाराओं में तो अभी और तरना है
कि अभी पूरी न हुई मेहनत तुम्हारी
अभी तो बहुत कुछ करना है।

क्यूँ होती हो मायूस देर सबेर जो लिखा है,
वो तो मिलना ही मिलना है।
बेचैन मन साहस न देगा तुम्हें,
धैर्य रख अभी तुम्हें बहुत

कुछ शुरू से शुरू करना है।
तो क्या हुआ देरी हुई तुझे कुछ पाने में,
हिम्मत न हारो!
हर बार यही सोच कर उठ जा ख़ुद से

बस यही है अंतिम अब नहीं झुकना है
अब नहीं गिरना है।
खुद की हिम्मत बनो,
अभी तो तुम्हें आगे
बहुत आगे पहुँचना है।

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2 thoughts on “कविता : उठो मन”

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