ये लड़ाई इतनी आसान नहीं,
बहुत ही कठिन है।
है जितनी मुश्किल ये राहें,
मंजिल पाना उतना ही जटिल है।
मद्धिम-मद्धिम क्षीण हो रही
मेरे भीतर की प्रबल इच्छा-शक्ति,
हे! नाथ! मेरे भीतर की
आत्मशक्ति जगाओ।
जो है मुझमें पाने की ललक,
उससे मुझे पीछे न हटाओ।
कोशिशें की हजार बार,
ये तुमने भी देखा हर बार।
फिर क्यूँ रख दिया
मुझे वंचित उससे,
जिसे जीने को बेकरार थी
जाने कब से…