जब से इस देश में सनी लियोनी टाइप्ड विदेशी पटाखा क्या आया है तब से न जाने क्यों घर के पटाखे सीलन भरे ही नज़र आने लगे हैं । अब तो माहौल ही ऐसा है कि अपने घर का बम भी बाहर की फुलझड़ी के सामने फीका सा लगने लगता है । घर के बम का प्रकोप तो रोज़ झेलते ही हैं कभी –कभार ही बाहर की फुलझड़ियों की रंगीनियाँ देखने को नसीब होती है।
हर दिवाली पर मेरी निगाहें घर की चकरघिन्नी से ज्यादा बगल की छत पर खड़ी किसी फुलझड़ी पर ही रहती है । यह दीगर बात है कि हमारा यह सपना कम खुराफात हमारी श्रीमती जी भांप जाती हैं और हमें ‘नो पटाखा ज़ोन’ में कैद करने के सारे फंडे और हथकंडे लगा देती है।
इस बार की दिवाली में भी बेगम साहिबा हमारे अरमानों के किले में सेंध लगाते हुए बोली –‘देखिये इस बार हम दिवाली पर पटाखे नहीं जलाएंगे । एक तो पैसे की बर्बादी ऊपर से पर्यावरण को नुकसान ।’ वैसे तो सामान्य परिस्थितियों में श्रीमती जी का हर प्रत्यक्ष सन्देश किसी परोक्ष आदेश की भांति ही निर्गत होता है लेकिन इस बार हमने भी सीजफायर का उल्लंघन करने की ठान ली थी।
उनके इस आतंकवादी हमले के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक कर हमने मुंह तोड़ जवाब देने की ठान ली। हमने अपने अन्दर के छुपे हुए कमांडो को बाहर निकालते हुए कहा-‘ दिवाली साल भर का त्योहार होता है । हम पटाखे नहीं खरीदेगें तो क्या दुनिया पटाखे चलाना छोड़ देगी । पडोसी हमारी ऊंची सोच नही बल्कि उसे कंजूसी का रोग मानेगे ।’ इतना सब कुछ श्रीमती जी से कहना हमारे जैसे सहिष्णु टाइप पति के लिए वाकई किसी कमांडो कार्यवाही से कम नहीं था।
अब समय था श्रीमती जी के पलटवार का । उनको मुझसे ऐसे अटैक की उम्मीद तो छोड़िए सपने में भी इस दुस्साहस का ख़याल नही था । किसी घायल शेरनी से हज़ार गुना प्रकोप को अन्दर ही डिफ्यूज करते हुए वह बोली –‘पता है मुझे भी कि यह त्योहार साल भर बाद आता है । साल भर बाद तो मेरा बर्थ डे भी आता है , साल भर बाद हमारी शादी की साल गिरह भी आती है , साल भर बाद ही वेलेंटाइन डे भी आता है , तब कभी उसे धूम धाम से मनाया है..? कभी मुझे कोई गिफ्ट दिलाया है..? सारी उमंगे दिवाली पर ही क्यों हिलोरे मारने लगती हैं..?’
श्रीमती जी के इस नॉन स्टॉप प्रवचन कम, हमले कम ,चेतावनी का हमारे पास वैसे तो कोई रेडीमेड जवाब नही था । लेकिन जिस युग में दो मिनट में कुछ बना कर भूख शांत कर ली जा सकती हो उस युग में दो मिनट में जवाब भी बनाकर किसी का गुस्सा शांत किया जा सकता है। इसी संबल के साथ हमने श्रीमती जी के टेम्परेचर को नार्मल में लाने के लिए उस पर इमोशनल अत्याचार रुपी पानी छिड़कना शुरू किया।
‘देखो डार्लिंग (यह डार्लिंग शब्द पत्नी रुपी मर्ज़ का सर्वमान्य इलाज है ) तुम्हारी हर बात बिलकुल ‘आइएसओ’ प्रमाणिक है । उसमे कहीं से कुछ भी गलत नहीं है । लेकिन दिवाली बुराई पर अच्छाई की,असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के रूप में भी तो मनाई जाती है । क्यों न हम कुछ इसी थीम पर अपनी छत पर पटाखे जला कर इस जीत को मनाये । कहीं ऐसा न हो कि बगल की मिसेज गुप्ता बाद में तुमसे पूछें कि तुम दिवाली वाले दिन छत पर दिखाई नहीं पड़ी , क्या घर में पटाखे नहीं आये थे..?’
अब मेरे इस अटैक का श्रीमती जी को काउंटर अटैक नहीं सूझ रहा था । कुछ देर मौन रह कर अपने खतम होते पेट्रोल को ‘मेन से रिज़र्व’ में लगाते हुए बोली –‘ ठीक है पटाखे जलाएंगे । लेकिन इस शर्त पर की वो पटाखे इस बार हमारे घर की छत पर नहीं बल्कि वो सामने दिख रही गरीबों की झुग्गियों- झोपड़ियों के आँगन में जलेंगे ।’ श्रीमती जी का यह दांव किसी ट्रंप कार्ड की तरह मुझे चारो खाने चित कर गया । लेकिन इस दांव के पीछे जो मंशा छिपी थी उसके आगे आत्म समर्पण कर देने में ही मुझे अपनी जीत का एहसास हो गया।

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