बैल-दीवाली, बिन बैल है खाली,
आओ मनाएं हम सूनी दीवाली ।
कोना भी सूना है,आँगन भी रूना है,
माँ और बेटे की हर बात है खाली ।
कृषक-भाई (बैल ) ठोकर ही खाए है,
कृषक के लिये है कहाँ खुशहाली ।
कम कहीं नहीं था, कमजोर नहीं था,
मशीन की तुलना में था बलशाली ।
पर भाई को जान, इक निरा जानवर,
किया किसान ने उसे बदहाली ।
कमाई से जिसकी ये भारत पला था,
आज है बस उसकी कटवाली।
बेटा ही जब कत्लखाने चढ़ा हो,
करे कौन अब गौ माता रखवाली ।
पुरातन को खोकर नए को है पाला,
उन्नति की चाल अजब मतवाली ।
सौ से घट कर अब साठ रह गयी,
अब भी कहते हो मशीन निराली ।
खोजो ढूंढो अनुसन्धान करो तुम,
जो है उसको अब कैसे सम्भाली ।
कृषक फिर से कृष् ही न बन जाए,
आत्महत्या का वो बने सवाली ।
समय अब भी है संभलो-संभालो,
आगे दिवालियां न हो फिर काली ।

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