कविता : याचक जिसे समझा तुमने

बहुत खुश हो आज तुम अपनी उपलब्धियों पर अब तो मानलो कि किसी ने ये खुशी तुम्हारे लिए मांगी होगी इतना इतराते हो कुछ हासिल करते हो जब तुम क्या जानो किसने तुम्हारे लिए ये दुआ की होगी ऐसे चले… Read More

कविता : तेरे संग जीना मरना

जीना मरना तेरे संग है। तो क्यो और के बारे में सोचना। मिला है तुम से इतना प्यार, तो क्यो गम को गले लगाना। और हंसती खिल खिलाती, जिंदगी को क्यो रुलाना। अरे बहुत मिले होंगे तुम्हे प्यार करने वाले।… Read More

पुस्तक समीक्षा : अतृप्त आकांक्षाओं की अट्टालिका पर खड़ी ‘मध्यांतर’

हिंदी साहित्य जगत में एक समय के बाद कविताएँ लिखना लगभग खत्म सा हो गया था। या यों कहें कि कविताएँ तो लिखी जाती रहीं मगर स्तरीय लेखन का उनमें अभाव था। साहित्यकार अब न तो दरबारी कवि थे और… Read More

व्यंग्य : हैप्पी बर्थ डे

“बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का  जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला” ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के… Read More

कविता : ऐ पूँजीपति कवियों

ऐ पूँजीपति कवियों! क्या तुम्हारी महँगी-महँगी और ब्राण्डेड डायरियों में ज़रा जगह नहीं लिखने को उनका नाम भी जिनकी समूची देह से अंग-अंग से लहू, पसीना, स्वेद-रक्त और आँसू पूरी तरह से, बुरी तरह से दूहे जा चुके हैं और… Read More

कविता : बच्चे

बच्चे बहुत अच्छे होते हैं तन, मन, वचन, आत्मा से बहुत सच्चे होते हैं प्रेम-सद्भाव के वृक्ष-आम के कोमल डालियों की तरह सदा झुके होते हैं कच्चे-पक्के फलों की तरह लदे होते हैं यदि मिलनसार की भाषा सीखना है तो… Read More

पुस्तक समीक्षा : ‘सरहदें’ तोड़ता है कई तरह की सरहदें

कवि हमेशा सीमाएँ तोड़ता है, वे चाहें जिस भी प्रकार की हों— राजनीतिक, समाजिक, धार्मिक अथवा आर्थिक। मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समाज के बिना उसका काम नहीं चलता, इसलिए वह सामाजिक नियमों में आसानी से बँध जाता है। यहाँ… Read More

कविता : अरज करूँ मैं

हे मेरे ईश्वर, ओ माय गॉड,ए मेरे मालिक, या खुदा। हाथ उठाऊं, अरज करूँ मैं, ढूँढ़ू तुझको मैं कहाँ कहाँ। मन्दिर में ढूँढा तो मिली बस तेरी मूरत थी प्यारी। गिरजे का घण्टा बजा मैं थाका तेरी शान थी न्यारी।… Read More

गीत : अकेला जा रहा हूँ

हाथ से छिटले हुये  रिश्ते नहीं झुठला रहा हूँ, वक़्त की सीढ़ी बड़ी बोझिल, जरा घबरा रहा हूँ। कुछ हैं अच्छे लोग, कुछ हैं ऐसे लोग जिनको, और अपना मानता था, खैर! धोख़े खा रहा हूँ । हाँ किसी जन्नत… Read More

कविता : कल को आज में जीओ

जो लोग कल में, आज को ढूंढते है। और खुद कल में जीते है, वो बड़े बदनसीब होते है। क्योंकि कल जिंदगी में, कभी आता ही नही। इसलिए में कहता हूं, की आज में जीकर देखो। जिंदगी होती है क्या,… Read More