हिंदी साहित्य जगत में एक समय के बाद कविताएँ लिखना लगभग खत्म सा हो गया था। या यों कहें कि कविताएँ तो लिखी जाती रहीं मगर स्तरीय लेखन का उनमें अभाव था। साहित्यकार अब न तो दरबारी कवि थे और न ही उन्हें किसी तरह का पारिश्रमिक या मानदेय मिल पा रहा था। अपवाद स्वरूप जिन्हें मिलता वह भी बहुत कम। हिंदी साहित्य में लेखक होना और लेखक होकर आर्थिक रूप से सम्पन्न हो पाना बड़ी टेड़ी खीर है। बावजूद इसके हमारे वर्तमान दौर में ऐसे कई कवि अथवा कवियत्रियाँ मौजूद हैं जो निरतंर अपनी कलम कविताओं के माध्यम से साध रहे हैं। ऐसी ही एक समाजसेवी, ब्लॉगर, कवियत्री और सम्पादिका हमारे बीच मौजूद है और नाम है प्रीति अज्ञात अब आप यहाँ भी पसोपेश या सोच में डूब सकते हैं यदि आपके भीतर जरा सा भी जातिवाद पनपे बैठा है तो आप यह सोचेंगे अज्ञात ? ये भला कौन ? जो आदमी अज्ञात हो उसका क्या ज्ञात होगा ? दरअसल लेखिका और कवियत्री के रूप में पहचान बना चुकी प्रीति जातिवाद के इसी भरे पूरे वृक्ष को उखाड़ फेंकने के लिए अपने नाम के आगे ‘अज्ञात’ उपनाम लिखती हैं।
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ख़्वाहिशों के बादलों की..कुछ अनकही, कुछ अनसुनी
यूँ होता…तो क्या होता !
इंडिया टुडे की वेबसाइट iChowk पर दो वर्षों से लगातार लेखन तथा ब्लॉग और पत्रिका चलाने वाली यह कवियत्री सामान्य जीवन में भी उतनी ही संवेदन शील हैं जितनी कि इतनी कविताएँ। एम. एससी. (वनस्पति शास्त्र), डिप्लोमा इन संस्कृत टीचिंग करने के बाद घर को सम्भालते हुए निरंतर लेखन करना तथा लेखन भी रचनात्मक, जिज्ञासु, मनोरंजित प्रवृति का करना अपने आप में अवश्य ही सराहनीय है। जहाँ तक कविता संग्रह कि बात की जाए तो “काव्य-संग्रह – मध्यांतर” (हिन्द-युग्म प्रकाशन) से साल 2016 में  प्रकाशित है। इसके अतिरिक्त 13 साझा काव्य-संग्रह, 2 साझा संस्मरण-संग्रह में रचनाएँ प्रकाशित, 5 पुस्तकों का संपादन तथा एक दर्ज़न से भी अधिक पुस्तकों की भूमिका एवं समीक्षा लेखन प्रीति कर चुकी हैं। इसके अलावा कई पुरुस्कारों से सम्मानित इस लेखिका और कवियत्री की कविताओं में मानव जीवन के हर एक पहलू और हर छोटे-छोटे मुद्दे पर बेहद संवेदनशील तरीके से कविताओं का सृजन किया गया है। हालांकि  मध्यांतर कविता संग्रह की चौरासी कविताओं में से बावजूद इसके कुछ कविताएँ भाषा और शब्द चयन के आधार पर प्रभावित नहीं कर पाती। किन्तु अधिकाँश कविताएँ आपको सोचने के साथ साथ नए शब्द भी दे जाती हैं। जिससे आपके शब्द कोश का भंडार समृद्ध होता है। कविता संग्रह की पहली ही कविता “कवि” आपको कवि बनने और कवि होने के मायने देती है।

जीवन के सुंदर स्वप्न को/ तार-तार कर डालो/ भिगो डालो/ पकते अहसासों की कलम से/ पुरानी डायरी के/ चुनिंदा वाहियात पन्ने/ फिर रोते हुए छुपा लो उन्हें/ दुनिया की नजर से/ हाय! चोट न पहुँचे/ किसी के हृदय को

 और ऐसा करके कोई भी कवि अपनी कविताओं को साध सकता है और तभी उसके भीतर का कवि चीखते हुए दुनिया एवं समाज के सामने आ पाएगा और वह समाज को कुछ संदेश दे पाने में कामयाब होगा। संग्रह की अगली कविता ‘एक बोरी आँसूं’ की अंतिम पंक्तियाँ कविता ही नहीं अपितु जीवन का निचोड़ भी साबित होती है।

चीखता इंसान/ पीटता सर/ क़िस्मत की निष्ठुर/  मजबूत दीवारों पर/ लहूलुहान हो हँसता/ स्वप्नों की सुतलियों से/ कसकर बाँध देता/ वही एक बोरी आँसूं/ कि मन की दरारों से रिसते रहें सारे जख्म/ न वक्त हुआ, न दुआ/ नामंजूर अव, हर मरहम

इतना ही नहीं इस संग्रह की एक-एक कविता जीवन के हर पड़ाव को महसूस करती और कराती है। और यही वजह है कि वे जीवन की अतृप्त आकांक्षाओं की अट्टालिका पर आ खड़ी होती हैं। जहाँ से जीवन के हर पड़ाव को यादों के लेटर बॉक्स में समेटती चली जाती है।

‘कौन हूँ मैं’ इसी तरह की कविता का उदाहरण है जहाँ व्यक्ति का खाना-पीना, उठना-बैठना, बात करने का तरीका, उसका स्वभाव यहाँ तक की उसकी सम्पूर्ण जीवन शैली प्रतिबिम्बित होती है। इतना सब होने के बावजूद भी जीवन में बहुत कुछ ऐसा है जो निरर्थक है और उस निरर्थकता पर भी जब प्रीति कलम चलाती है तो वहाँ से स्नेह की एक उम्मीद की किरण फूट पड़ती है। फिर उपजती है इस किरण से एक ऐसी कविता जहाँ प्रीति अज्ञात एक ऐसी दुनिया की तलाश में ले चलती है जहाँ किसी की आँखों में नीर न हो, व्यापार, शब्दों का वार, उदास चेहरे कुछ भी न दिखाई देता हो। परिवर्तन की मार झेलती उन बस्तियों पर भी कवियत्री लिखती है जो श्मशान के नजदीक है। जहाँ उन्हें हर रोज मालूम होता है जीवन का शाश्वत सत्य।

मध्यांतर कविता संग्रह में ‘जीते-जी न जान सके’ एक ऐसी कविता है जिसे गीतबद्ध करके गाया भी जा सकता है। यह कविता कविता न होकर एक गीत बन जाती है जहाँ जीवन के एक अंत के बाद उस व्यक्ति अथवा मनुष्य के अब तक जिए गए जीवन के सार को लयबद्ध करती है। आज का मनुष्य एक भीड़ में पूरी तरह समाहित हो चला है उसे पल-पल उस ब्रेकिंग न्यूज का हिस्सा बनना भी अच्छा लगता है जो उसके काम का नहीं हो।

चौरासी कविताओं के इस संग्रह में स्त्री, सेलिब्रिटी, स्त्री विमर्श, दुनिया, सच-झूठ, एक टुकड़ा जिंदगी, सुनो भगवान, माँ कहती थी, तुम पूछना अवश्य, उम्मीद का सूरज, रिश्तों के समीकरण, बचपन की यादें, मध्यांतर, उम्र के चार दशक, मिलना तो मेरा तय ही है तुमसे, आखरी खत, एक शहर, शब्द-सेतु, छटपटाहट, मृत्यु युद्ध, अब डर नहीं लगता, प्रमाणपत्र, अजी थोड़ा तो जी लीजिए, अकवि आदि शीर्षक से कविताएँ हैं।

हिंदी साहित्य में वर्तमान में जहाँ कुछ लेखक नई वाली हिंदी के नाम से रोचक तथा लुभावने  शीर्षक किताबों, कहानियों, उपन्यासों के रख कर पाठकों को आकर्षित करने का काम कर रहे हैं वहीं प्रीति कविताएँ लिखकर मानव जीवन के हर एक हिस्से को उद्घाटित कर रही हैं। नई वाली हिंदी के नाम पर पाठकों को ठगने वाले और एक तरह से लुगदी साहित्य उनकी हाथों में थमाकर अपनी वाहवाही बटोरने वाले ये तथाकथित लेखक हिंदी साहित्य का दिनों दिन ह्रास ही अधिक कर रहे हैं।

लेखिका – प्रीति अज्ञात
रचना विधा – कविता संग्रह
प्रकाशक – हिंदी युग्म

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