देवरिया। वरिष्ठ आलोचक, कवि एवं संपादक, गोरखपुर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व आचार्य डॉ. परमानंद श्रीवास्तव की पुण्यतिथि आज नागरी प्रचारिणी सभा के गांधी सभागार में मनाई गई। कार्यक्रम का आयोजन जनपद से प्रकाशित साहित्य एवं शोध की तिमाही पत्रिका पतहर द्वारा किया गया था। डॉ. परमानंद श्रीवास्तव के पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ चित्र पर पुष्प अर्पित कर किया गया। ‘परमानंद श्रीवास्तव की साहित्यिक यात्रा’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. संतोष यादव, पूर्व प्राचार्य एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग, रामजी सहाय पीजी कॉलेज रुद्रपुर देवरिया ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। डॉ. यादव ने कहा कि परमानंद श्रीवास्तव ने पूरे अंचल में साहित्यिक माहौल निर्मित करने का काम किया था। उनका व्यक्तित्व प्रेमचंद की तरह था। वह मौन योगी थे। उनकी साहित्यिक यात्रा में कविता, कहानी, पत्रकारिता, आलोचना सब कुछ है। वे मनुष्य और मनुष्यता के पक्ष में खड़े रहने वाले आलोचक व साहित्यकार थे। डॉ. यादव ने अपने विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कि परमानंद जी खुद को साहित्य का होलटाइमर मानते थे। उन्होंने नामवर सिंह के साथ मिलकर आलोचना नामक पत्रिका का संपादन भी किया। उनकी रचनाएं शोषण व सांप्रदायिकता के विरोध में आवाज बुलंद करती हैं।परमानंद जी मजदूरों किसानों के साहित्यकार थे। युवा पीढ़ी को परमानंद जैसे साहित्यकारों से प्रेरणा लेनी चाहिए। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए प्रसिद्ध एक्टिविस्ट डॉ. चतुरानन ओझा ने कहा कि परमानंद श्रीवास्तव दुनिया के ज्ञान को आत्मसात करके अपने पाठकों- छात्रों को सौंप देते थे। उन्होंने आमजन के बीच रहते हुए अपना रचनात्मक कार्य किया। उन्होंने कहा कि गोरखपुर में 10 फरवरी 1935 को जन्मे डॉ. परमानंद जी ने समाज के पक्ष में खड़े होकर सबकी चिंता की। वे सब से लगाव रखते थे।



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