हाथ से छिटले हुये  रिश्ते नहीं झुठला रहा हूँ,
वक़्त की सीढ़ी बड़ी बोझिल, जरा घबरा रहा हूँ।
कुछ हैं अच्छे लोग, कुछ हैं ऐसे लोग जिनको,
और अपना मानता था, खैर! धोख़े खा रहा हूँ ।
हाँ किसी जन्नत में आदम-हूर-हव्वा जोड़कर,
वो भले मालिक बना, मैं आदमी बनता रहा हूँ।
साहिलों से जंग हारी लहरों से भी दुश्मनी की,
मछलियों का यार हूँ, पर रूह तक तेरा रहा हूँ।
और सदियों से जिसे चाहा गया था टूटकर ,
वो अकेली जा रही है, मैं अकेला जा रहा हूँ।

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