मुंबई के कांदिवली इलाके की एक पुरानी बिल्डिंग की तीसरी मंज़िल पर वर्मा परिवार रहता था। मध्यमवर्गीय लेकिन बेहद संतुलित और खुशहाल। राजीव वर्मा एक निजी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर थे, उनकी पत्नी नीलिमा गृहिणी थीं, और उनका इकलौता बेटा… Read More

मुंबई के कांदिवली इलाके की एक पुरानी बिल्डिंग की तीसरी मंज़िल पर वर्मा परिवार रहता था। मध्यमवर्गीय लेकिन बेहद संतुलित और खुशहाल। राजीव वर्मा एक निजी बैंक में असिस्टेंट मैनेजर थे, उनकी पत्नी नीलिमा गृहिणी थीं, और उनका इकलौता बेटा… Read More
शुभ श्रावण मास, शिव तत्व विचार, जहाँ शिव हैं, नंदी भी साथ धार।। जहाँ धर्म है, शिव भी वास करें, जहाँ शिव हैं, धर्म का प्रकाश भरे।। शिवजी का वाहन वृषभ धर्म स्वरूप, धर्म की सवारी, शिव करते अनूप।। जीवन… Read More
पत्नीजी गर्मी की छुट्टियों में मायके जाने लगीं। साले साहब लेने आये थे और उस पर तुर्रा यह था कि चार पहिया से लेने आये थे। बरसों पहले एम्बेसडर से ब्याह कर मेरे घर आई पत्नी अब स्कार्पियो से मायके… Read More
फूलों के जैसे मुस्कुराई बेटियाँ भंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप में रिश्ता वो सभी से ही निभाई बेटियाँ बेटे की चाहत में यूँ माँ-बाप ने फिर कोख में ही मार गिराई बेटियाँ वर-दक्षिणा… Read More
सावन का महीना भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना में एक विशेष स्थान रखता है। यह वह समय है जब धरती हरी चादर ओढ़ लेती है, आकाश सावन की फुहारों से सज उठता है और हर ओर हरियाली और शीतलता का… Read More
मशहूर शायर जनाब निदा फ़ाज़ली साहब का एक शेर है- “कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख, रास्ता भी चुन, फिर इसके बाद थोड़ा मुकद्दर तलाश कर”। मगर विज्ञापनों की दुनिया में तो हर काम तुरत-फुरत होना चाहिये । 1-मसलन अगर… Read More
राजस्थान के अलवर जिले की कठूमर तहसील के पावटा गांव के हरिराम को आदिवासी और दलित साहित्य लेखन में विशेष योगदान और मानवीय मूल्यों को वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ाने के लिए बाबू इंद्रदेव प्रसाद स्मारक शिक्षा एवं सामाजिक… Read More
‘गर्दिशों के गणतंत्र में’ काव्य संग्रह में मानवीय चेतना के विविध प्रसंग- हिंदी साहित्य में काव्य की प्राचीन परंपरा रही है। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल आदि में साहित्य काव्यात्मक रूप से लिखा गया। रीतिकाल के बाद रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध… Read More
आया है ये वक्त कैसा रक्त नहीं रक्त जैसा। बेटा आज बाप को ही अर्थ समझाता है। चपर-चपर बोले सुनता ना हौले-हौले। जननी के सामने ना सर को झुकाता है। मौके की फ़िराक़ में है सपनों की साख में है।… Read More
“कोई ऐ शाद पूछे या न पूछे, इससे क्या मतलब, खुद अपनी कद्र करनी चाहिये साहब कमालों को”। किसी गुमनाम शायर की इन मशहूर पंक्तियों को हमारे हिंदी-उर्दू के कवियों और शायरों ने अपने दिल पे ले लिया है शायद।… Read More