मूवी रिव्यू : उजड़े चमन की उजड़ी हुई कहानी है उजड़ा चमन

एक प्रोफेसर है उम्र तीस बरस सब कुछ ठीक है। नही है तो सिर पर बाल। इस वजह से वह 30 का होकर भी 40-50 का अंकल टाइप लगता है। ऐसे उजड़े चमन इस दुनिया में बहुत से हैं। लेकिन… Read More

अखण्ड भारत : राष्ट्रीय एकता दिवस 2019

जय हिन्द जय अखण्ड भारत देश मेरा आजाद हुआ जब रियासत रजवाड़ों में बिखरा था पटेल जी के अथक प्रयासों से तब एकीकृत हो निखरा था पाँच सौ बासठ रियासतों को नायक ने एक एक जोड़ लिया जूनागढ़ के संग… Read More

कविता : लुटा तो मैं हूँ

कभी अपनो ने लूटा  कभी गैरो ने लूटा। पर में लुटता ही रहा। इस सभ्य समाज में।। किससे लगाएँ हम गुहार, जो मेरा दर्द समझ सके। मेरे ज़ख़्मों पर, मलहम लगा सके। और अपनी इंसानियत, को दिखा सके। और मुझे… Read More

छठ पर्व और आस्था

आस्था से बढ़ कर कुछ भी नहीं। जिसकी जिसमें आस्था उसे वहीं से सब कुछ मिलता है। धन्ने जट्ट ने इसी आस्था के बल पर काले पत्थर में से भगवान को प्रकट हो कर सूखी रोटियां खाने पर मजबूर कर… Read More

कविता : चलो उस ओर

चलो उस ओर, जहां सूरज निकलता है। पंख फैलाएँ, बिना रुके, बिना ठहरे। चलो उस ओर, जहां ऊर्जा-प्रकाश मिलता है। उम्मीद की किरणों से, हमारा मन प्रभावित  होगा। ऊर्जा रूपी प्रकाश से, हमारा चेतन प्रकाशित होगा। प्रतिपल बढ़ता हमारा कदम,… Read More

कविता : तलाशेंगे

अंधेरा भाग जाएगा हमी रास्ते तलाशेंगे “उजाले के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे” बुरे लोगों की है बस्ती मगर विश्वास है हमको मिलेंगे लोग अच्छे हम अगर अच्छे तलाशेंगे चलो चलते चलो एक दिन ज़माना साथ आएगा अभी जो… Read More

कविता : जाने कब से

ये लड़ाई इतनी आसान नहीं, बहुत ही कठिन है। है जितनी मुश्किल ये राहें, मंजिल पाना उतना ही जटिल है। मद्धिम-मद्धिम क्षीण हो रही मेरे भीतर की प्रबल इच्छा-शक्ति, हे! नाथ! मेरे भीतर की आत्मशक्ति जगाओ। जो है मुझमें पाने… Read More

chhath-puja

आस्था के महापर्व छठ की यादों को हमसे साझा करें

आस्था के महापर्व #छठ से जुड़ी हुई अपनी यादों को हमसे अपनी रचनाओं के माध्यम से साझा करें। जिसे साहित्य सिनेमा सेतु के वेबपोर्टल पर प्रकाशित किया जाएगा। www.sahityacinemasetu.com ईमेल : sahityacinemasetu@gmail.com अंतिम तिथि : 01.11.19 लेखकों/रचनाकारों हेतु:- अपना नाम… Read More

बैल दिवाली

बैल-दीवाली, बिन बैल है खाली, आओ मनाएं हम सूनी दीवाली । कोना भी सूना है,आँगन भी रूना है, माँ और बेटे की हर बात है खाली । कृषक-भाई (बैल ) ठोकर ही खाए है, कृषक के लिये है कहाँ खुशहाली… Read More

व्यंग्य : दिवाली ‘पटाखा’ और ‘फुलझड़ियाँ’

जब से इस देश में सनी लियोनी टाइप्ड विदेशी पटाखा क्या आया है तब से न जाने क्यों घर के पटाखे सीलन भरे ही नज़र आने लगे हैं । अब तो माहौल ही ऐसा है कि अपने घर का बम… Read More