आखर और मैथिली-भोजपुरी अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. की जन्मशताब्दी के अवसर पर ‘हिंदी सिनेमा के विकास में लोकसंगीत और लोकभाषा के प्रभाव (विशेष संदर्भ : भोजपुरी) विषयक आज हिंदी भवन में एक व्याख्यान का… Read More
आखर और मैथिली-भोजपुरी अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में भोजपुरी के गीतकार मोती बी.ए. की जन्मशताब्दी के अवसर पर ‘हिंदी सिनेमा के विकास में लोकसंगीत और लोकभाषा के प्रभाव (विशेष संदर्भ : भोजपुरी) विषयक आज हिंदी भवन में एक व्याख्यान का… Read More
इस दौर में जब देश में बाढ़ का प्रकोप है तो नाक से सांस लेने वाले प्राणियों में नाक एक लक्ष्मण रेखा बन गयी है, पानी अगर नाक तक ना पहुंचा तो मनुष्य के जीवित रहने की संभावना कुछ दिनों… Read More
भारत माता तेरा स्वर्णिम इतिहास देता हमें गौरवानुभव का अहसास तेरी गोद से अनेक वीरों ने जन्म है लिया प्राणों का दे बलिदान नाम ऊँचा तेरा किया विद्वानों की तू पृष्ठभूमि कृषि से होता तेरा श्रृंगार जाती… Read More
कोई औरत जब किसी मर्द को सौंपती है अपना शरीर, वो सिर्फ शरीर नहीं होता, वो उसकी वासना भी नहीं होती, वो प्रकृति की आदिम भूख नहीं होती वो औरत बाजारु हो जरुरी भी नहीं औरत तलाशती है संरक्षण,… Read More
धान के कटोरे के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ धान की विभिन्न फसलों के प्रकारों के साथ ही साथ कला के विभिन्न प्रकारों के लिए जाना जाता है। छत्तीसगढ़ के खजाने में से एक ऐसा ही खजाना गोदना चित्रकला है। गोदना… Read More
ना इंतज़ार, ना आहट, ना तमन्ना, ना उम्मीद… ज़िंदगी है कि यूँ ही बेहिस हो जाती है… मीना कुमारी ‘नाज़’ भारतीय सिनेमा की ट्रेजिडी क्वीन मीना कुमारी रवींद्रनाथ ठाकुर के खानदान से ताल्लुक रखती थी। दिलीप कुमार जहाँ ट्रेजिडी किंग… Read More
आंखों के जरिये अपने अभिनय से सबके दिल में उतर जाने वाली हिंदी सिनेमा की ट्रेजडी क्वीन महज़बीन बानों यानि कि मीना कुमारी (1 अगस्त 1933- 31 मार्च 1972) का आज जन्मदिन है। इनके जीवन की बड़ी ही अजीब दास्तां… Read More
लेखकीय दृष्टि यदि अपने युगीन सामाजिक ,राजनीतिक ,धार्मिक,आर्थिक ,सांस्कृतिक दबावों ,घात –प्रतिघातों ,सम्बंधों में आती जटिलताओं के बीच मनुष्य की संपूर्णता में आत्मसात करते हुए जनाभिमुख और जनहित में अभिव्यक्त होती है तो वह सदैव प्रासांगिक बनी रहती है और… Read More
कला केवल यथार्थ की नक़ल का नाम नहीं है कला दिखती तो यथार्थ है, पर यथार्थ होती नहीं उसकी खूबी यही है की यथार्थ मालूम हो……मुंशी प्रेमचंद बीसवीं शती के संवेदनशील रचनाकार उर्दू से हिंदी भाषा में लिखने वाले… Read More
प्रेमचंद को पढ़ना उन चुनौतियों को प्रत्यक्ष अनुभूत करना है, जिन्हें भारतीय समाज बीते काफी समय से झेलता आया है और आज भी उन चूनौतियों का हल नहीं ढूँढ पाया है। दलित, स्त्री, मजदूर, किसान, ऋणग्रस्तता, रिश्वतखोरी, विधवाएँ, बेमेल विवाह,… Read More