कभी स्वतंत्र रियासत होने वाला जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने 2 अक्तूबर 1947 में भारत के साथ विलय-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जुड़ गया। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार प्रदान करता है। जिसने केंद्र की शक्तियों को सीमित कर दिया।

अनुच्छेद 370? 

विदेश, संचार और सुरक्षा पर ही कानून बनाने का अधिकार रखती है। इनके अलावा सभी कानून जम्मू कश्मीर की विधान सभा से पास होकर राष्ट्रपति की सहमति हो। नवंबर 1952 में भारत के राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370 के राज्य में लागू होने का आदेश दिया। इसके बाद अब्दुल्ला और नेहरू के बीच दिल्ली समझौता हुआ जिसमें जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी की परिभाषा तय हुई। इसके बाद 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के आदेश के बाद संविधान में 370 के साथ 35ए को जोड़ा गया। यह जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता है। और 35ए यहाँ के मूल और स्थायी निवासी को निर्धारित  करने की शक्ति देता है। यहा अधिकार राज्य के उन कानूनों को भी सुरक्षित रखता है।   

35 ए  (जम्मू-कश्मीर में नागरिकता संबंधी विशेष प्रावधान ) है क्या?

            विधान सभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का अधिकार और बाहरी राज्यों के निवासियों को यहाँ अचल संपत्ति खरीदने से रोक सके। इसी के तहत यहाँ कई दशकों से रहने वालों को भी यह अधिकार नहीं मिला है।1947 में  पश्चिमी पाकिस्तान को छोड़कर जम्मू कश्मीर में बसे हिंदू परिवार आजतक शरणार्थी ही हैं। एक आंकड़े के मुताबिक 1947 में जम्मू  में 5764 परिवार आकार बसे थे। इन परिवारों को आज तक कोई नागरिक अधिकार नहीं मिले हैं। ये सरकारी नौकरी और न ही व्यावसायिक शिक्षा देने वाले सरकारी संस्थानों में दाखिला ले सकते हैं। इनमें लाखों लोग शामिल हैं, जो पंजाब के बाल्मीकी से लेकर गोरखा समुदाय के हैं।1957 में बाल्मीकी समुदाय के करीब दो सो परिवारों को यहाँ सफाई का काम करने के लिए लगाया गया था। 71 साल से काम कर रहे इन लोगों को आज भी यहाँ का स्थायी निवासी नहीं माना जाता। इन्हें  वोट देने का अधिकार आज भी प्राप्त नहीं हैं। राज्य का नागरिक वही हो सकता है, जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो। या उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो। या कोई संपत्ति हंसिल की हो। 1 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तानी सीमा क्षेत्र में गया हो लेकिन वापस रिसेटलमेंट  परमिट के साथ वापस आया हो। 1927 और 1932 के राजा हरिसिंह के जारी किए गए नोटिस के मुताबिक 1911 में पैदा होने वाला भी स्थायी नागरिक हो सकता हो। साथ ही कानूनी तौर पर राज्य में प्रॉपर्टी खरीदी हो। जम्मू-कश्मीर के लोग तीन चार पीड़ियों के बाद आज भी शरणार्थी ही कहलाते हैं। और अधिकारों से वंचित हैं।

            यह बहुत साहसिक और ऐतिहासिक निर्णय है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म होने के बाद कुछ तब्दीलियाँ इस प्रकार होंगी। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पेश किया गया, जिसमें धारा 370 में  संशोधन का प्रस्ताव और इसके अलावा दो विधेयक भी पेश किए गए। केंद्रीय गृह मंत्री ने राज्य सभा में 11 बजे दो संकल्प किए पेश जिसमें संसद से पास होने के बाद विशेष राज्य का अधिकार होगा खत्म। अनुच्छेद 370 का खंड एक छोड़ सभी पर संसोधन प्रस्ताव और अधिसूचना ने ली संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 1954 की जगह।

            इसके खत्म होने से आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग को राज्य में 10 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक पेश। लद्दाख को बिना विधान सभा के केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव।  जम्मू कश्मीर को विधान सभा के साथ केंद्र शासित प्रदेश बनने का प्रस्ताव। लद्दाख और जम्मू एवं कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव। पुनर्गठन के जरिए दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रस्ताव। संविधान के धारा 356 हो सकेगी लागू।  कानून लागू करवाने के लिए राज्य सरकार का अनुमोदन नहीं। रक्षा, विदेश मामले और संचार के अलावा सभी विषयों पर कानून बनाने का संसद का अधिकार।  

1976 का शहरी भूमि कानून जम्मू-कश्मीर पर भी लागू होगा। जम्मू-कश्मीर में पंचायत को अब होगा अधिकार प्राप्त। संसद अब सीधे राज्य के लिए बना सकेगी कानून।  उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू कश्मीर में होंगे मान्य। जम्मू-कश्मीर राज्य का राष्ट्र ध्वज भी नहीं होगा अब अलग। राज्य में राष्ट्र ध्वज या राष्ट्रीय प्रतिकों का अपमान अब होगा अपराध। जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की दोहरी नागरिकता होगी खत्म। संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 2019 अधिसूचित जारी। (नोट: सूचना का प्रमुख स्रोत; राज्य सभा न्यूज़ चैनल व अन्य)

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