मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ ! लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ ! न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका, मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ ! मैं… Read More
ग़ज़ल : नज़र उठा कर तो देख
कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त, आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब, कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना, कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल, हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त, कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है “मिश्र”, कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख +20
ग़ज़ल : पराई सी लगती है
हमें तो हर वफ़ा में, बेवफ़ाई सी लगती है अब तो अच्छी बात भी, बुराई सी लगती है जब मिलती हैं सजाएँ, बिन ख़ता के यारो, तो दिल को हर चीज़, पराई सी लगती है कुछ कहें तो लोग, समझते… Read More
ग़ज़ल : बुलाते क्यों हो
न हो जहां क़द्र, उधर जाते क्यों हो जो रूठा बेसबब, उसे मनाते क्यों हो दिल ओ बदन की ज़रूरतें अजीब हैं, फिर जो न पचता, उसे खाते क्यों हो जो बदल दे अपना रुख़ ज़रा लोभ में, फिर उसको… Read More
कविता : सावन की देखो रिमझिम आयी
सावन की देखो रिमझिम आयी ! यारो तपती धरती अति हर्षायी ! सब उफन उठे हैं नद और नाले, खग चहक रहे हो कर मतवाले, उत करें मयूरा नर्तन अलवेला, जित देखो उत पानी का रेला, यारो झट से गरमी… Read More
ग़ज़ल : ज़िन्दगी की उलझनों से
ज़िन्दगी की उलझनों से, हम मजबूर हो गए ! अब हर किसी की नज़र से, हम बेनूर हो गए ! कभी सोचा था कि चलना ही ज़िन्दगी है यारा , मगर सफर के हालात से, हम मजबूर हो गए !… Read More
ग़ज़ल : कोई भी मिलने नहीं आता
फुर्सत है तो कोई भी, मिलने नहीं आता हाल दिल का कोई, समझने नहीं आता हर कोई गुमसुम सा बस क़ैद है घर में, अबतो कोई यार भी, अटकने नहीं आता वीरान सडकों पर दिखते हैं बस मवेशी, अब तो… Read More
कविता : वो तो भूल गए
वो तो भूल गए कि उनको, बनाया किसने था चलना पकड़ के ऊँगली, सिखाया किसने था वो कहते हैं कि मंज़िल क़रीब है उनकी अब, पर भूल गए कि ये रास्ता, दिखाया किसने था होते हैं बहुत खुश जब देखते… Read More
ग़ज़ल : मंज़िलें पास नहीं होतीं
मंज़िलें पास नहीं होतीं, ज़रा दौड़ना सीखो सफर की रुकावटों को, ज़रा तोड़ना सीखो ज़िंदगी की राह में मिलते हैं अनेक चौराहे, यूं हौसले की गाड़ी को, ज़रा मोड़ना सीखो होती नहीं हर चीज़ हर किसी के मुकद्दर में, बाक़ी ख़ुदा की मर्ज़ी पे, ज़रा छोड़ना सीखो न मिलता कभी सुकून अपनों को भुला कर, उनसे टूटे हुए रिश्तों को, ज़रा जोड़ना सीखो चलते हैं जुबाँ के तीर हर तरफ से कितने ही, तुम बधिरता के कवच को, ज़रा ओढ़ना सीखो निशब्द होना भी तो ज़िंदगी पे बोझ है ‘मिश्र’, जिगर में भरे ज़हर को, ज़रा निचोड़ना सीखो 00
ग़ज़ल : कल की फ़िक्र में
कल की फ़िक्र में, आज का बिगाड़ मत करिये मरने से पहले ही, कफ़न का जुगाड़ मत करिये भला कल तक रहेगा कौन ये किस को पता है, यूं हाथों में आईं, ख़ुशियों का कबाड़ मत करिये अपने ख्वाबों को झूठी उड़ान मत दो तो बेहतर, सच तो सच ही रहेगा, राई का पहाड़ मत करिये मिलती है मुश्किलों से अपनों की मोहब्बत यारा, रखिये ज़रा संभाल के, इसका दोफाड़ मत करिये चमन में तो गुल खिलेंगे अपने ही वक़्त पे “मिश्र”, पर जल्दी की चाहत में, इसका उजाड़ मत करिये +10