सावन की देखो रिमझिम आयी !
यारो तपती धरती अति हर्षायी !
सब उफन उठे हैं नद और नाले,
खग चहक रहे हो कर मतवाले,
उत करें मयूरा नर्तन अलवेला,
जित देखो उत पानी का रेला,
यारो झट से गरमी दूर भगायी !
सावन की देखो रिमझिम आयी !
कृषकों का हुआ तन मन हर्षित,
उन्हें इक इक बूँद करे आनंदित,
हर तरफ दिखती हरियाली है,
अब हवा की सीरत मतवाली है,
सृष्टि की जिसने प्यास बुझाई !
सावन की देखो रिमझिम आयी !
करे बागों में कोयलिया कूहू कूहू,
बोले कहीं दूर पपीहा पीहू पीहू ,
यूं ही बच्चे छप छप करते फिरते,
यारो कीचड़ में वो गिरते फिरते,
सबने ही कागज़ की नाव बनायी !
सावन की देखो रिमझिम आयी !
यारो सब ताल तड़ाग भये मदमाते,
चौपाये घुस कर उत लोट लगाते,
यारो कहीं दूर भमीरी तान लगावें,
दादुर इत कहीं पास ही राग सुनावें,
बस हर तरफ इंद्र की माया छायी !
सावन की देखो रिमझिम आयी !
अब सर्प लोक भी नींद से जगा ,
हर सर्प निकल कर बाहर भागा ,
वो जगह ढूंढ कर छिपते फिरते ,
बस इस मानव से वो डरते फिरते,
वो सोच रहे ये क्या आफत आयी !
सावन की देखो रिमझिम आयी !
खुशियां आयीं पर दुःख भी आया,
पागल नदियों ने उत्पात मचाया,
वो बहा ले गयीं सब खेती बाड़ी,
यारो बर्बाद हो गयी मेहनत गाढ़ी,
जाने कितनों ने यारो जान गंवाई !
सावन की देखो रिम झिम आयी !
हर चीज़ की यारो अति है वर्जित,
यारो दुनिया में ये बात है चर्चित ,
यूं ज्यादा खुशियां भी ठीक नहीं ,
यारो ज्यादा दुखड़े भी ठीक नहीं ,
वो करता वही जो उस मन भायी !
सावन की देखो रिमझिम आयी !