इससे पहले कि मैं अब पागल हो जाऊँ। चाहता हूँ कि तुम्हारा काज़ल हो जाऊँ।। तू बरसती रहे मैं भीगता रहूँ मुसलसल, ग़र तू भीगती रहे तो मैं बादल हो जाऊँ।। मैं वो पत्थर भी नहीं कि जिसे चोट न… Read More
ग़ज़ल : मुस्कान बदल लेता है
कभी नाम बदल लेता है, कभी काम बदल लेता है, सब कुछ पाने की ललक में, वो ईमान बदल लेता है। इस बेसब्र आदमी को नहीं है किसी पे भी भरोसा, गर न होती है चाहत पूरी, तो भगवान् बदल लेता है। है कैसा आदमी कि रखता है बस हड़पने की चाहत, गर मिल जाए कुछ मुफ्त में, तो आन बदल लेता है। इतने रंग तो कभी गिरगिट भी नहीं बदल सकता है, यारों जितने कि हर कदम पर, ये इंसान बदल लेता है। कमाल का हुनर हासिल है मुखौटे बदलने का इसको, पड़ते ही अपना मतलब, झट से ज़ुबान बदल लेता है। “मिश्र” काटता है बड़े ही ढंग से ये अपनों की जड़ों को, सामने दिखा के भारी ग़म, पीछे मुस्कान बदल लेता है। +160
ग़ज़ल : कहने को आदमी हैं
महंगाई बढ़ रही है, संबंध घट रहे हैं वो हम से कट रहे हैं, हम उन से कट रहे हैं इतिहास हो गए अब आँगन के खेल सारे क्वार्टर के दायरे में, अब घर सिमट रहे हैं महफिल सजी-सजी पर,… Read More
ग़ज़ल : चलो अब आदमी बना जाए
सच नहीं वो जिसे सुना जाए सच नहीं वो जिसे लिखा जाए आँख देखा भी झूठ होता है कैसे ज़िंदा यहाँ रहा जाए इस कदर तार-तार रिश्ते हैं किसे अपना सगा कहा जाए एक चेहरे पे कई चेहरे हैं कैसे… Read More
ग़ज़ल : मैं भी जुबाँ रखता हूँ
मैं खामोश हूँ लेकिन, मैं भी जुबाँ रखता हूँ ! लोगों के छोड़े तीर, दिल में जमा रखता हूँ ! न समझो कि न आता मुझे जीने का सलीका, मैं पैरों तले जमीन, मुट्ठी में आसमाँ रखता हूँ ! मैं… Read More
ग़ज़ल : नज़र उठा कर तो देख
कितना मतलबी है जमाना, नज़र उठा कर तो देख कोंन कितना है तेरे क़रीब, नज़र उठा कर तो देख न कर यक़ीं सब पर, ये दुनिया बड़ी ख़राब है दोस्त, आग घर में लगाता है कोंन, नज़र उठा कर तो देख भला आदमी के गिरने में, कहाँ लगता है वक़्त अब, कोई कितना गिर चुका है, नज़र उठा कर तो देख क्यों ईमान बेच देते हैं लोग, बस कौड़ियों में अपना, कितना बचा है ज़मीर अब, नज़र उठा कर तो देख शौहरत की आड़ में, खेलते हैं कितना घिनोंना खेल, हैं कहाँ बची अब शराफ़तें, नज़र उठा कर तो देख जो हांकते हैं डींगें, औरों का भला करने की दोस्त, कितने सच्चे हैं वो दिल के, नज़र उठा कर तो देख तू समझता है सब को ही अपना, निरा मूर्ख है “मिश्र”, कितने कपटी हैं अब लोग, नज़र उठा कर तो देख +20
ग़ज़ल : पराई सी लगती है
हमें तो हर वफ़ा में, बेवफ़ाई सी लगती है अब तो अच्छी बात भी, बुराई सी लगती है जब मिलती हैं सजाएँ, बिन ख़ता के यारो, तो दिल को हर चीज़, पराई सी लगती है कुछ कहें तो लोग, समझते… Read More
ग़ज़ल : बुलाते क्यों हो
न हो जहां क़द्र, उधर जाते क्यों हो जो रूठा बेसबब, उसे मनाते क्यों हो दिल ओ बदन की ज़रूरतें अजीब हैं, फिर जो न पचता, उसे खाते क्यों हो जो बदल दे अपना रुख़ ज़रा लोभ में, फिर उसको… Read More
ग़ज़ल : ज़िन्दगी की उलझनों से
ज़िन्दगी की उलझनों से, हम मजबूर हो गए ! अब हर किसी की नज़र से, हम बेनूर हो गए ! कभी सोचा था कि चलना ही ज़िन्दगी है यारा , मगर सफर के हालात से, हम मजबूर हो गए !… Read More
ग़ज़ल : कोई भी मिलने नहीं आता
फुर्सत है तो कोई भी, मिलने नहीं आता हाल दिल का कोई, समझने नहीं आता हर कोई गुमसुम सा बस क़ैद है घर में, अबतो कोई यार भी, अटकने नहीं आता वीरान सडकों पर दिखते हैं बस मवेशी, अब तो… Read More