ghazal me pagal ho jau

इससे पहले कि मैं अब पागल हो जाऊँ।
चाहता हूँ कि तुम्हारा काज़ल हो जाऊँ।।

तू बरसती रहे मैं भीगता रहूँ मुसलसल,
ग़र तू भीगती रहे तो मैं बादल हो जाऊँ।।

मैं वो पत्थर भी नहीं कि जिसे चोट न हो,
मैं वो फूल भी नहीं कि घायल हो जाऊँ।।

लगा के देखो मुमकिन है नाम के बाद,
मेरा नाम मिले तो मैं मुक़म्मल हो जाऊँ।

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One thought on “ग़ज़ल : मैं अब पागल हो जाऊँ”

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