प्रेम के कुछ गंदे सने शब्दों को
आंखों की बाल्टी में
कुछ गर्म आँसुओं के साथ
जब पूर्णतः भिगोकर
दिल के पत्थर पर फ़ीचता हूँ
और वह भी
जब तक
कि उसके चिथड़े न हो जायँ
तब तक
मुझे बेचैनी सी होती रहती है
कुछ अधूरापन सा महसूस होता है
फिर कुछ देर बाद
साफ़ संतुष्टि तक
उसको आत्मा से निचोड़कर
खुले कोरे पन्नों की अरगौनी पे डाल देता हूँ
ताकि लोगों के नज़रों की धूप में
सूखकर पढ़ने लायक हो जायँ।
ठीक उसी तरह
जैसे किसी कपड़े की तरह
मुझे उपहार में मिले हों
प्रेम के कुछ गंदे सने शब्द भी
जिसे पहन के,
मैं बातचीत कर रहा हूँ।।
मेरे पास आते आते
बहुत सारे शब्द थक जाते हैं
फिर उन्हीं थके हारे शब्दों को
हर्फ़ दर हर्फ़ जोड़कर
एक ताक़तवर वाक्य बनाता हूँ
जिससे मैं उस भाषा के
व्याकरण को तोड़ सकूँ।
ताकि मैं ज़िंदा रह सकूँ,
तुम्हारी भाषा में।