poem ye hawa le chal kahi

ऐ हवा ले चल कहि,
इस शोर से दूर कहि!!

कड़वा है हर लहज़ा यहाँ,
जहां हो मिठास कहि!!

है यहाँ आपसी मतभेद,
ना हो जहाँ बैर कहि!!

ऐ हवा ले चल कहि,
इस शोर से दूर कहि!!

हर जगह देखो भीड़ है,
है क्या रास्ता सुनसान कहि!!

जहाँ हो ना तीसरा कोई,
सुनेंगे जीवन की दास्तां कहि!!

ऐ हवा ले चल कहि,
इस शोर से दूर कहि!!

खुला आसमां हो जहाँ,
वहाँ दे तू आसरा कहि!!

है अनुज मजाक शायद,
कहेंगे फिर पहेली कहि!!

ऐ हवा ले चल कहि,
इस शोर से दूर कहि!!

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