ghazal chalo ab aadmi bana jaye

सच नहीं वो जिसे सुना जाए
सच नहीं वो जिसे लिखा जाए

आँख देखा भी झूठ होता है
कैसे ज़िंदा यहाँ रहा जाए

इस कदर तार-तार रिश्ते हैं
किसे अपना सगा कहा जाए

एक चेहरे पे कई चेहरे हैं
कैसे इन्सान को पढ़ा जाए

बन के बहुरूपिया रहे अब तक
चलो अब आदमी बना जाए

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