हूँ बहुत टूटा हुआ, बिखरा हुआ घायल निराश मरु में एक भटके पथिक-सा, दिग्भ्रमित- सा हताश प्रेम को प्यासा ह्रदय, व्याकुल स्वभाव ठिठोल को अपनत्व को आकुल है मन, जीवन दो मृदुबोल को बोल जिनको सुनकर मेरा, नयन नीर भी… Read More

हूँ बहुत टूटा हुआ, बिखरा हुआ घायल निराश मरु में एक भटके पथिक-सा, दिग्भ्रमित- सा हताश प्रेम को प्यासा ह्रदय, व्याकुल स्वभाव ठिठोल को अपनत्व को आकुल है मन, जीवन दो मृदुबोल को बोल जिनको सुनकर मेरा, नयन नीर भी… Read More
हर दिन होता रोता धोता । सुनो अगर इतवार न होता॥ जीवन इक ढर्रे पर चलता। फुर्सत वाला समय न मिलता॥ देती नींद हमें उलाहने। ताने देते हमको सपने॥ बैड टी अख़बार का नाता। कभी नहीं पुख़्ता हो पाता॥ अनमने… Read More
मेरे राम हैं तेरे राम, तेरे राम है मेरे राम रामचंद्र जग के रखवारे, सबके काज सँवारे राम। सारी दुनिया भई दीवानी, बनी बाँवरी देख ज़रा चली आ रही धाम अयोध्या, दर्शन देंगें रामलला मंगल गीत गा रहे सारे, ताल… Read More
कहीं का ईट कहीं का रोडा भानुमती ने कुनबा जोड़ा। देखो देखो इस कुनबे को कैसे इतरा रहा है कुनबा। इस कुनबे में स्वार्थ है ज्यादा पर अपनापन बहुत कम है। फिर भी देखो इस कुनबे को एक सूत्र में… Read More
जो बीत गया सो बीत गया अब उसके लिए क्यों रोना। आने वाले पलो की सोचो खुशियों के बारे में सोचो। जीने का मकसद को सोचो जीने की तुम राह चुनो। मोक्ष मार्ग तुमको मिलेगा सच्चे मन से तुम या… Read More
ठिठुरन सी लगे, सुबह के हल्के रंग रंग में । जकड़न भी जैसे लगे, देह के हर इक अंग में ।। उड़ती सी लगे, धड़कन आज आकाश में। डोर भी है हाथ में, हवा भी है आज साथ में। पर… Read More
तब तुमने कविता लिखी बाबूजी जब फांसी पर झूला किसान, जब गिरवी हुआ उसका खेत और मकान, जब बेचा था उसने बीवी का अन्तिम गहना, तब भी दूभर था उसका ज़िंदा रहना, वो हार गया आखिर जीवन की बाजी, तब… Read More
हे राम! मुझे हनुमान समझ कर अपना लो निज सेवक सुत अंजान समझ कर अपना लो महामूरख ठेठ नादान समझ कर अपना लो कंकड़ धूलि पाषान समझ कर अपना लो। नेह इतना बरसाओ कि मन दुःख बिसरा दे दुःख पीड़ा… Read More
भारत माँ के लाल यशस्वी, कोटि- कोटि चरण वन्दन। अमर मनुज विवेकानंद जी,सह्रदय स्वामी अभिनन्दन ।। सम्मान बढ़ाया भारत का, हम विश्वगुरु हैं बतलाया। सुन शून्य की अनन्त व्याख्या,जग का माथा चकराया।। भाषण दिया शिकागो में, पश्चात वो प्रवचन कहलाया।… Read More
बागड़ प्रदेश के बांसवाड़ा में गोविंद गुरु के सानिध्य में पाई थी तरक्की भीलों ने उनके अथक प्रयास से छोड़ दी थी सारी बेतुकी और बर्बादी की आदतें शराब, जुआं, चोरी और मवेशी खाना गांव-गांव पैदल चलकर करते थे सभा… Read More