बागड़ प्रदेश के बांसवाड़ा में
गोविंद गुरु के सानिध्य में
पाई थी तरक्की भीलों ने
उनके अथक प्रयास से
छोड़ दी थी
सारी बेतुकी और बर्बादी की आदतें
शराब, जुआं, चोरी और मवेशी खाना
गांव-गांव पैदल चलकर करते थे सभा
और देते फैसला न्याय का
जिससे विश्वास पैदा हो गया था भीलों में
घर-घर जाकर समझाते
असामाजिक तत्वों को भी
ईमानदारी से मेहनत करने के लिए
करते थे प्रेरित सभी को
बच्चों की शिक्षा का कर चुके थे आह्वान
फूटी कौड़ी नहीं सुहाते थे
रजवाड़े और व्यापारियों को
क्योंकि उसने
जागृत कर दिया था भीलों को
एकता के साथ
अधिकार और न्याय के लिए
लड़ पड़े थे भूल
छक्के छूट गए थे अंग्रेजो के भी
मानगढ़ की पहाड़ी पर
कर दिया था ऐलान
स्वतंत्रता का
और डर गए थे रजवाड़े भी
डेढ़ हजार से ज्यादा
हुई थी शहादतें
लेकिन हटे नहीं भील
डटे रहे अंत तक
यह जलियांवाला बाग से
छह वर्ष पहले की बड़ी घटना थी
लेकिन
रजवाड़े के चाटूकारों की पोती में
एक लाइन तक नहीं मिलती
अन्यथा भरी पड़ी है पोथियां
रजवाड़ों की झूठी प्रशंसा में।
