फूलों के जैसे मुस्कुराई बेटियाँ भंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप में रिश्ता वो सभी से ही निभाई बेटियाँ बेटे की चाहत में यूँ माँ-बाप ने फिर कोख में ही मार गिराई बेटियाँ वर-दक्षिणा… Read More

फूलों के जैसे मुस्कुराई बेटियाँ भंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप में रिश्ता वो सभी से ही निभाई बेटियाँ बेटे की चाहत में यूँ माँ-बाप ने फिर कोख में ही मार गिराई बेटियाँ वर-दक्षिणा… Read More
‘गर्दिशों के गणतंत्र में’ काव्य संग्रह में मानवीय चेतना के विविध प्रसंग- हिंदी साहित्य में काव्य की प्राचीन परंपरा रही है। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल आदि में साहित्य काव्यात्मक रूप से लिखा गया। रीतिकाल के बाद रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध… Read More
ख़ुद को बचा ख़ुदी से बचे ही रहेंगे हम। कल भी भले थे सबके भले ही रहेंगे हम।। साज़िश तमाम हो रही सच को मिटाने की। मिटने न देंगे सच को अड़े ही रहेंगे हम।। होता नहीं रईस कभी जो… Read More
पहचान एक होगी मेरे नाम के लिए मैं जाना जाऊंगा तो मेरे काम के लिए ये उम्र है करने की अभी कर ले यूं ना डर जीवन पड़ा हुआ है फिर आराम के लिए यूं ही नहीं खिलता है चमन… Read More
दिनांक 15/04/2025 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिन्दी विभाग के रामचंद्र शुक्ल सभागार में विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप के संरक्षण में डॉ. सुनील कुमार शर्मा के ग़ज़ल संग्रह ‘तीरगी में रौशनी’ पुस्तक का लोकार्पण संपन्न हुआ। जिसमें देश भर… Read More
मोहब्बत के सफर पर चलने वाले रही सुनो मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है महज़ शादी किसी मोहब्बत का साहिल नहीं मंज़िल तो दूर बहुत इससे भी दूर जाती है। जिन निगाहों में मुकाम-ए-इश्क़ शादी है उन निगाहों… Read More
ये जिस्म, ये लिबास, यहीं छोड़ जाऊंगा जो कुछ है मेरे पास, यहीं छोड़ जाऊंगा जब जाऊंगा तो कोई न जायेगा मेरे साथ सब लोगों को उदास, यहीं छोड़ जाऊंगा भर-भर के जाम जिस में पिए उम्र भर वही ख़ुशियों… Read More
वक़्त मोहब्बत में गुज़र जाये, तो अच्छा है ज़िंदगी कुछ और ठहर जाये, तो अच्छा है न की है तमन्ना ज्यादा खुशियों की हमने, ज़रा सी मुस्कान बिखर जाये, तो अच्छा है दिल धड़कता है जाने किस-किस के वास्ते, मुकद्दर… Read More
यहाँ की हवाओं में ज़हर घोलने वाले। तू गूंगा क्यों हो रहा है सब बोलने वाले॥ तेरे आँसू किसी के गम में क्यों निकलते नहीं। तू क्यों रोता है सियासत के पर खोलने वाले॥ चैन की ज़िन्दगी थी एक, उसको… Read More