ग़ज़ल : बेटियाँ

फूलों के जैसे मुस्कुराई बेटियाँ भंवरों के जैसे गुनगुनाई बेटियाँ माँ, बेटी, अनुजा और तिय के रूप में रिश्ता वो सभी से ही निभाई बेटियाँ बेटे की चाहत में यूँ माँ-बाप ने फिर कोख में ही मार गिराई बेटियाँ वर-दक्षिणा… Read More

पुस्तक समीक्षा : गर्दिशों के गणतंत्र में

‘गर्दिशों के गणतंत्र में’ काव्य संग्रह में मानवीय चेतना के विविध प्रसंग- हिंदी साहित्य में काव्य की प्राचीन परंपरा रही है। आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल आदि में साहित्य काव्यात्मक रूप से लिखा गया। रीतिकाल के बाद रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध… Read More

ग़ज़ल : फिर भी बुरे ही रहेंगे हम

ख़ुद को बचा ख़ुदी से बचे ही रहेंगे हम। कल भी भले थे सबके भले ही रहेंगे हम।। साज़िश तमाम हो रही सच को मिटाने की। मिटने न देंगे सच को अड़े ही रहेंगे हम।। होता नहीं रईस कभी जो… Read More

ग़ज़ल : पहचान

पहचान एक होगी मेरे नाम के लिए मैं जाना जाऊंगा तो मेरे काम के लिए ये उम्र है करने की अभी कर ले यूं ना डर जीवन पड़ा हुआ है फिर आराम के लिए यूं ही नहीं खिलता है चमन… Read More

‘तीरगी में रौशनी’ ग़ज़ल संग्रह का लोकार्पण

दिनांक 15/04/2025 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिन्दी विभाग के रामचंद्र शुक्ल सभागार में विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप के संरक्षण में डॉ. सुनील कुमार शर्मा के ग़ज़ल संग्रह ‘तीरगी में रौशनी’ पुस्तक का लोकार्पण संपन्न हुआ। जिसमें देश भर… Read More

aurat

ग़ज़ल : औरत

उमर के साथ साथ किरदार बदलता रहा शख्सियत औरत ही रही प्यार बदलता रहा। बहिन, बेटी, बीबी, माँ, न जाने क्या क्या चेहरा औरत का दहर हर बार बदलता रहा। हालात ख्वादिनों के कई सदियां न बदल पाईं बस सदियाँ बदलती रहीं, संसार बदलता रहा।… Read More

mohbbat

नज़्म : मोहब्बत

मोहब्बत के सफर पर चलने वाले रही सुनो मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है महज़ शादी किसी मोहब्बत का साहिल नहीं मंज़िल तो दूर बहुत इससे भी दूर जाती है। जिन निगाहों में मुकाम-ए-इश्क़ शादी है उन निगाहों… Read More

ग़ज़ल : यहीं छोड़ जाऊंगा

ये जिस्म, ये लिबास, यहीं छोड़ जाऊंगा जो कुछ है मेरे पास, यहीं छोड़ जाऊंगा जब जाऊंगा तो कोई न जायेगा मेरे साथ सब लोगों को उदास, यहीं छोड़ जाऊंगा भर-भर के जाम जिस में पिए उम्र भर वही ख़ुशियों… Read More

to acha hai

ग़ज़ल : तो अच्छा है

वक़्त मोहब्बत में गुज़र जाये, तो अच्छा है ज़िंदगी कुछ और ठहर जाये, तो अच्छा है न की है तमन्ना ज्यादा खुशियों की हमने, ज़रा सी मुस्कान बिखर जाये, तो अच्छा है दिल धड़कता है जाने किस-किस के वास्ते, मुकद्दर… Read More

naturelove

ग़ज़ल : यहाँ की हवाओं में ज़हर घोलने वाले

यहाँ की हवाओं में ज़हर घोलने वाले। तू गूंगा क्यों हो रहा है सब बोलने वाले॥ तेरे आँसू किसी के गम में क्यों निकलते नहीं। तू क्यों रोता है सियासत के पर खोलने वाले॥ चैन की ज़िन्दगी थी एक, उसको… Read More