mohbbat

मोहब्बत के सफर पर चलने वाले रही सुनो
मोहब्बत तो हमेशा जज्बातों से की जाती है
महज़ शादी किसी मोहब्बत का साहिल नहीं
मंज़िल तो दूर बहुत इससे भी दूर जाती है।

जिन निगाहों में मुकाम-ए-इश्क़ शादी है
उन निगाहों में फक़त हवस बदन की है
ऐसे ही लोग मोहब्बत को दागी करते हैं
क्योंकि इन्हें तलाश सिर्फ गुदाज़ तन की है।

जिस मोहब्बत से हजारों आँखें झुक जायें
उस मोहब्बत के सादिक होने में ही शक़ है
जिस मोहब्बत से कोई परिवार उजड़ जाए
तो वो प्यार नहीं दोस्त लपलपाती वर्क़ है।

मेरे लफ्ज़ों में, मोहब्बत है वो पाक़ चिराग़
जिसकी शुआओं से ज़माना रौशन होता है
जिसकी लौ दुनिया को सुकूँ दिया करती है
ना कि जिससे शर्मिन्दा नशेमन होता है।

मेरे दोस्त! जिसकी वाइस पशेमान होना पड़े
मैं उसे हरगिज़ मोहब्बत कह नहीं सकता
नज़र जिसकी वजह से मिल न सके ज़माने से
मैं ऐसी मोहब्बत को सादिक कह नहीं सकता।

मैं भी किसी मोहब्बत के ख़िलाफ़ नहीं हूँ
मैं भी मोहब्बत को ख़ुदा की तरह मानता हूँ
लेकिन फर्क़ है इतना कि मैं इसे मर्ज़ नहीं
ज़िन्दगानियाँ सँवारने की दवा मानता हूँ।

साफ हर्फ़ों में मोहब्बत उस आईने का नाम है
जो हक़ीक़त जीने की हँसके कबूल करवाता है
आदमी जिसका तस्सव्वुर भी नहीं कर सकता
मोहब्बत के फेर में पड़ वो कर गुज़र जाता है।

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