दिनांक 15/04/2025 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के हिन्दी विभाग के रामचंद्र शुक्ल सभागार में विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप के संरक्षण में डॉ. सुनील कुमार शर्मा के ग़ज़ल संग्रह ‘तीरगी में रौशनी’ पुस्तक का लोकार्पण संपन्न हुआ। जिसमें देश भर से आए प्रसिद्ध हिंदी विद्वानों ने इस पुस्तक की संवेदना और शिल्प पर चर्चा- परिचर्चा की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. वशिष्ठ अनूप ने कहा कि वर्तमान हिंदी ग़ज़ल समकालीन हिंदी कविता के समानांतर चल रही है और उसकी सभी प्रवृतियों को अपने में समाविष्ट किए हुए है। यह ग़ज़ल हमारे जीवन-जगत की समस्याओं से जुड़ गई है। उन्होंने कहा कि सुनील जी की ग़ज़लों के अंतर्वस्तु के साथ इसका शिल्प पक्ष भी बहुत समृद्ध है। ये अंधेरे में रौशनी की कामना करती हैं। इसमें प्रेम के साथ राजनीतिक, सामाजिक और समसामयिक विसंगतियों को भी उजागर किया गया है। डॉ. सुनील कुमार शर्मा ने अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ काव्य सृजन की यात्रा को साझा करते हुए बताया कि मशीनी दुनिया से ऊबने के बाद साहित्य ही हमें जीने की कला सिखाता है। उन्होंने अपनी किताब ‘तीरगी में रौशनी’ की कुछ बेहतरीन ग़ज़लें पढ़ीं।

देखी दुनियादारी भी और सबका रंग बदलते देखा,
जिसने जैसा सांचा पाया उसको वैसा ढलते देखा।

वरिष्ठ प्रोफेसर श्री प्रकाश शुक्ल जी ने कहा कि इनकी ग़ज़लों में परिधि की परिस्थितियां ही नहीं हैं बल्कि परिधि पर हस्तक्षेप भी दिखाई देता है उन्होंने संवेदना को तकनीक से जोड़ने या कहें कि तकनीक को संवेदनशील बनाने की कोशिश की है। प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी जी ने कहा कि जो मशहूर ग़ज़लकार होते हैं उनकी पंक्तियों में सबका हल होता है। सुनील जी की ग़ज़लों की सादगी बहुत प्रभावित करती है। इन्होंने सहज संवादी भाषा का बहुत कलात्मक प्रयोग किया है। अभिनव अरुण ने बताया कि आज की हिंदी ग़ज़ल दौरे-हाजिर का मुकम्मल बयान है। डॉ. सुनील की ग़ज़लों की संवेदना अत्यंत गहरी है वे समय की नब्ज़ को गहराई से पकड़ते हैं। उनकी ग़ज़लें बार-बार पढ़ी जाने योग्य हैं।

डॉ. कासिम अंसारी (उर्दू विभाग ) ने ग़ज़ल के इतिहास पर गौर करते हुए कहा कि इस किताब का उन्वान इसकी ख़ुसूसियत को बड़ी ख़ूबसूरती से बयान करता है। डॉ. शर्मा की ग़ज़लों में मीर, फ़िराक़ आदि का प्रभाव भी दिखता है। डॉ. सुमन सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि उनकी गजलें हमें ख़ुदग़र्ज़ होती दुनिया को इंसानियत का पाठ पढ़ाती हैं।

डॉ. आदित्य विक्रम सिंह ने रचना और रचनाकार का परिचयात्मक उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का सुव्यवस्थित संचालन डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया। धन्यवाद ज्ञापन और कार्यक्रम का सुंदर संयोजन डॉ. सत्यप्रकाश पाल ने किया। इस अवसर पर विभाग के अन्य अध्यापक शोधार्थी और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

(प्रस्तुति- दिव्या शुक्ला)

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