यहाँ की हवाओं में ज़हर घोलने वाले।
तू गूंगा क्यों हो रहा है सब बोलने वाले॥
तेरे आँसू किसी के गम में क्यों निकलते नहीं।
तू क्यों रोता है सियासत के पर खोलने वाले॥
चैन की ज़िन्दगी थी एक, उसको भी छीन लिया।
इन्साफ के तराज़ू में नफरत को तोलने वाले॥
जहाँ भी जाएगा तू परेशान ही रहेगा आखिर।
चादर इंसान की सुन ले ओढ़ने वाले॥
एक दिन तेरा भी हिसाब होगा ज़िंदगी का।
मज़लूमों के घरों को बे-हिसाब तोड़ने वाले॥
अवाम के हाथों नीस्त-ओ-नाबूद हो जाएगा तू भी।
ताकत से अपनी लोगों के सर फोड़ने वाले॥
इस सब के बावजूद भी हम चिराग़ जलाएँगें।
हमें कहते हैं सब ‘आसिफ’ दिल जोड़ने वाले।।