धनकुल वाद्ययंत्र…

छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल, आदिम संस्कृति एवं प्रकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यहां के लोक जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक कला रूप समाया हुआ है। ऐसे ही कला का एक रूप धनकुल है जो बस्तर अंचल… Read More

अबोध से कलंक तक चन्द्रमुखी उर्फ़ ‘माधुरी दीक्षित’ विशेष

15 मई 1967 को मुंबई में जन्मी सबके दिलों की धड़कन धक धक गर्ल और देवदास की चंद्रमुखी यानी माधुरी दीक्षित एक सफ़ल भारतीय सिनेमा अभिनेत्रियों में से एक है। हिंदी सिनेमा के 80, 90 के दशक तक एक मुख्य… Read More

राजभाषा और राष्ट्रभाषा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं

अक्सर हम हिंदी को राष्ट्रभाषा के काल्पनिक पचड़े में उलझाना चाहते हैं। मगर यह तर्कपूर्ण सत्य है कि हिंदी राष्ट्रभाषा थी इसीलिए ब्रिटिश भारत से आधुनिक स्वतंत्र भारत बनने के क्रम में संवैधानिक रूप से राजभाषा के पद पर हिंदी  आसीन… Read More

राजभाषा हिंदी

राजभाषा हिंदी दो शब्दों से मिलकर बना है राज और भाषा। इसका सामान्य अर्थ है राजकाज की भाषा या शासन की भाषा। भारत में कई बार विदेशी आक्रमण हुए जिसमें शासन की भाषा अलग एवं शोषित की भाषा अलग होती… Read More

क्यों घटता जा रहा है सिनेमा में हिंदी महत्व ?

14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को अखण्ड भारत की प्रशासनिक भाषा के ओहदे से नवाजा था। यही वजह है कि 1953 से प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के… Read More

पंकज त्रिपाठी : अपने ही रचे क्राफ्ट को बार-बार तोड़ता नायक

एक बेहतर अभिनेता वह है जो अपने रचे हुए क्राफ्ट को बार बार तोड़ता है, उसमें नित नए प्रयोग करता है और अपने दर्शकों, आलोचकों, समीक्षकों को चौंकाता है। बीते सालों में पंकज त्रिपाठी ने लगातार इस तरह के प्रयोग… Read More

मैं कैप्टन जैक स्पैरो हूँ !!!

हाँ सही सुना कैप्टेन जैक स्पैरो, जो कंकाल रूपी एक शरीर है। दरअसल मैं अभिशप्त आत्मा हूँ, मृत जीव या कहे एक मसखरा जो उलझे क्षणों में अपनी उपस्थिति से हास्य पैदा कर देता है। मैं इंसान नही हूँ बल्कि… Read More

नॉट आउट @हंड्रेड (व्यंग्य)

“ख्वाबों,बागों ,और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है”  यही  वो इश्तहार है    जो उन  लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे  थे। ये देखकर वो   खासे मुतमइन हुए थे । फिर जब जगह जगह… Read More

हिंदी दलित कविता

आधुनिक काल में हिन्दी  दलित कविता का प्रारंभ सितम्बर 1914 में सरस्वती में प्रकाशित हीरा डोम की भोजपुरी कविता से माना जाता है।जिसका शिर्षक था’अछूत की शिकायत’–“हमनी के इनरा से निगिचे ना जाइलेजापांके में भरी पीअतानी पानीपनही से पिटि पिटि… Read More

आचार्य शुक्ल : वाद-विवाद-संवाद

शुक्ल ने न केवल इतिहास लेखन की बहुत ही  कमजोरपरम्परा को उन्नत किया बल्कि आलोचना के अतीव रुढ़िग्रस्त और क्षीण परम्परा को अपेक्षित गांभीर्य और विस्तार दिया।डॉ.नगेन्द्र जहाँ रीतिकाल को पुनप्रतिष्ठित करने की भरपूर कोशिश करते दिखते हैं,वहीं शुक्ल वहाँ… Read More