छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल, आदिम संस्कृति एवं प्रकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। यहां के लोक जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक कला रूप समाया हुआ है। ऐसे ही कला का एक रूप धनकुल है जो बस्तर अंचल के हल्बी और भतरी परिवेश में चार जगार-
1. आठे जगार
2. तीजा जगार
3. लक्ष्मी जगार
4. बाली जगार
कथा गायन की परंपरा है। धनकुल इन्ही चार प्रकार के जगार गीतों में बजाये जाने वाला यंत्र है। धनकुल दो शब्दों से मील कर बना है। धन-धनुष, कुला-सूपाधनकुल वाद्ययंत्र के चलते जगार गीतों को धनकुल गीत के नाम से भी जाना जाता है। इस वाद्य का वादन दो महिलाये जगार गीत गाती हुई करती है। इन गायिकाओं को गुरुमायँ कहा जाता है। धनकुल वाद्ययंत्र की रूपरेखा……हड़िया (मिट्टी का मटका) को जमीन पर रखा जाता है उसके मुंह को सूपा से ढक दिया जाता है और उस ढके हुये सूपा के ऊपर धनुष के एक सिर को टिकाया जाता है तथा दूसरा सिरा जमीन पर टिका होता है। जिसे कड़ी (लकड़ी का स्टिक) की सहायता से बजाते है। धनकुल वाद्ययंत्र अपने आपमें एक अनोखा तथा आकर्षित करने वाला वाद्ययंत्र है।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *