हाँ सही सुना कैप्टेन जैक स्पैरो, जो कंकाल रूपी एक शरीर है। दरअसल मैं अभिशप्त आत्मा हूँ, मृत जीव या कहे एक मसखरा जो उलझे क्षणों में अपनी उपस्थिति से हास्य पैदा कर देता है। मैं इंसान नही हूँ बल्कि इंसानों का चोला ओढ़े एक आत्मा हूँ। आत्मा जिसके लिए सब पारदर्शी है। उससे कुछ छिपा हुआ नही है। मैंने कभी खुद की तुलना मनुष्यो से नही की, क्योंकि मैं जानता हूँ कि मनुष्य मेरी तरह नही बन सकते। वे घिरे हुए है अपनी निजी समस्याओं में, उनके पास वो आँखे ही नही है जिससे वे समस्याओं के हल को तलाश सकें। वे तो बस दोषारोपण के सिद्धान्तों में यकीन रखते है। खुद को मुसीबत में घिरा पाकर टूटकर बिखर जाते हैं। मैं कैप्टेन जैक स्पैरो समुद्री लुटेरा हूँ। जिसने सात समंदरो पर राज़ किया है। मुझे पता है कि दुनिया 71% पानी से घिरी हुई है और एक न एक दिन 100% यह जलमग्न होगी, इसीलिए मैं समंदर के अंदर रहता हूँ और अब मुझे इसमें आनन्द आने लगा है। मैं अभी से तैयारी कर रहा हूँ जब पूरी दुनिया में समंदर ही बस होगा और मैं कैप्टेन जैक स्पैरो उस वक़्त पूरी दुनिया पर राज़ करूँगा, क्योंकि तब मेरी दुनिया में यह इंसानों की दुनिया समा जायेगी। हालाँकि यह इंसानी दुनिया मेरी दुनिया में समा कर इसे भी अपने जैसा बनाने का प्रयास करेंगे। पर वो नामुराद लोग मुझसे अधिक चालाक नही हो सकते।मैंने कई बंदीगृहों के घमंड को चूर किया है। कोई भी मुझे बहुत अधिक समय तक क़ैद नही कर सकता। हाँ कई लोगो ने ऐसा किया पर आखिर में मुँह की ही खाई।मैं कोई अय्यार नही हूँ, ना ही कोई उड़ने वाला परिंदा। बस मुझपर कोई संविधान , नियम, कानून लागू नही हो सकते। यहाँ तक की लुटेरों के नियमो को भी मैं झुठला चुका हूँ।मैं सहर मस्त कलन्दर हूँ और यही मेरी पहचान है। मेरे प्रसंशक भी जब मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलते है तो उन्हें मुझसे नफरत होने लगती है। मुझे अच्छी यादें इस नकली दुनिया में छोड़ जाने का कोई शौक नही है। यादों की पोटली बांधना मेरी फितरत नही। मैं खूब शराब पीता हूँ, जब होश में रहता हूँ तब यह दुनिया मुझे धर्म, जाति, मजहब, ऊंच नीच, काले गोरे में भेद करती हुई आपस में ही लड़ती मरती हुई दिखती है। कोई मासूम के साथ बलात्कार करता दिखता है तो कोई शरीर के अंगों के व्यापार में संलिप्त मिल जाता है। मैंने ऐसे कई लोगो को भी देखा है जिन्होंने अपने हथियारों को बेचने के लिए पूरे दुनिया में तबाही फैला रखी है। लोग मुझसे बोलते है कि मैं धोखेबाज हूँ पर क्या उन्होंने उन लोगो पर कभी गौर किया है जो मुँह में राम बगल में छूरी वाला हिसाब रखते हैं।जो पूरी दुनिया को साथ लेकर चलने का दिखावा करते है पर पीठ पीछे अशांति और हिंसा फैलाते है वो भी सिर्फ इसलिए की वे अपनी जेबें भर सके। कुछ लोग शान्ति और मोक्ष की तलाश में पहाड़ो पर जा कर बसे हुए है। मेरे विचार से ऐसे लोगो को गोली से उड़ा देना चाहिए, नाकारा , जाहिल , बेवक़ूफ़।अपने परिवार और दुनिया से दूर अपनी जिम्मेदारियों से भागे हुए लोगो को क्या मोक्ष मिल सकेगा?ऐसे लोग ना तो किसी समाज के लिए फायदेमंद होते है ना ही किसी इंसान के लिए ये निरे स्वार्थी लोग है जो अपना देखना बस चाहते हैं। यही है धरती के असली बोझ।हाँ प्यार करने लायक भी बहुत सारी चीजे है यहाँ। पर वो सब भी अब इस नई परम्परा के आगोश में शनै शनै समा रहा है। बहुत सारी बातें है पर मुझे किसी की भी परवाह नही है ……. जरा सी भी नही । क्योंकि ये परवाह करने लायक यहाँ कोई भी नही है। पर फिर भी परवाह करता हूँ मै इसीलिए यह सब लिख रहा हूँ। मेरे पिताजी कहते थे ” ज़िन्दगी को बेहोश होकर जीना सही नही हैं, ज़िन्दगी का असली अर्थ है कभी भी अपने होश ओ हवास को ना खोना।”
क्रमशः-