एक बेहतर अभिनेता वह है जो अपने रचे हुए क्राफ्ट को बार बार तोड़ता है, उसमें नित नए प्रयोग करता है और अपने दर्शकों, आलोचकों, समीक्षकों को चौंकाता है। बीते सालों में पंकज त्रिपाठी ने लगातार इस तरह के प्रयोग करते हुए अपने ही रचे क्राफ्ट को बार-बार तोड़ा है। आप हमेशा पाएंगे कि इस अभिनेता का काम कैसे एक से दूसरे में अलग तरह से ही ट्रासंफार्म हो जाता है और वह भी सहजता-सरलता से दिखता हुआ लेकिन जादुई तरीके से आपको ठिठकने पर मज़बूर करता हुआ और आपकी आंखों और होंठों पर आश्चर्यमिश्रित मुस्कान के साथ। यानी नरोत्तम मिश्रा के सामने मुन्ना माइकल का गुंडा और नील बट्टे सन्नाटा का प्रिंसपल श्रीवास्तव, सुल्तान से कैसे जुदा हो जाता है , वैसे ही ग्रे शेड्स वाले अलग किरदार पाउडर का नावेद अंसारी, गुडगाँव का केहरी सिंह और मिर्ज़ापुर के अखंडानंद त्रिपाठी और सेक्रेड गेम्स के खन्ना गुरुजी एक खास मनोवृति के दिखने वाली दुनिया में रहते हुए पर्दे पर नितांत अलग-अलग हैं और जब मैं अलग कह रहा हूँ तो वह ठीक पूरब और पश्चिम वाले अलग हैं। यह अभिनेता पंकज त्रिपाठी के अभिनय शैली की उत्कृष्टता के विभिन्न सोपान और विभिन्न छवियाँ हैं। इधर जिस वेबसीरिज ने पंकज त्रिपाठी के अभिनय के एक अलग किन्तु आश्चर्यजनक रूप से बेहतरीन पक्ष को सामने लाया है वह क्रिमिनल जस्टिस है। यहां माधव मिश्रा का किरदार केवल एक किरदार के निर्दोष सिद्ध करने की जुगत में नहीं लगा है बल्कि इस पूरी प्रक्रिया में माधव मिश्रा का किरदार खुद की तलाश में है, जहाँ इस दुनिया में उसके होने के भी कुछ मायने हैं और इसी प्रक्रिया में न्याय की वह लड़ाई उसकी खुद के प्रति न्याय की बन भी जाती है। इस पूरे सीरीज में पंकज त्रिपाठी एक अलग अभिनेता दिखते हैं। इस किरदार पर बात करना जरूरी है क्योंकि एक सजग दर्शक जब-जब माधव मिश्रा का वह किरदार देखता है बलराज साहनी की वह बात पंकज त्रिपाठी कर अभिनय पर सौ फीसदी उचित बैठती है जहां वह कहते हैं “प्रत्येक अभिनेता की अपनी अलग तकनीक होती है, जिसे उसने गहन अध्ययन और लंबे अभ्यास के बाद सीखा होता है।”

आज के बाकमाल अभिनेता पंकज त्रिपाठी का आज उनके बीते 2 दशकों के कड़े परिश्रम, प्रयोग और अध्ययन के कल पर टिका है। अब इधर एकाध अंग्रेजी मैगज़ीन ने पंकज त्रिपाठी के व्यक्तित्व का एक अनूठा पहलू सामने पेश किया है। यकीन जानिए एक खास वाली छवि को तोड़ना आसान नहीं होता। पर कुशल अभिनेता बार-बार अपने सटीक प्रयोगों से अपनी ही बनाई छवियों को तोड़ एक नई इबारत लिख देता है और दर्शक बार बार उसके इस रूप से चकित होती रहती है। इन बीते दिनों में ‘द मैन’ मैगज़ीन टीम ने पंकज त्रिपाठी के इस पहलू को पहचानकर उन तमाम आलोचकों के मुँह पर ताला जड़ दिया है जो इस अदाकार को एक खास फ्रेम में देखने की जुगत में थे। यह एक्टर्स (अभिनेताओं) का दौर है। इन अभिनेताओं में पंकज त्रिपाठी तो भोजन में नमक की तरह जरूरी जो गए हैं। यह हमारे जीवन वन के वह फूल हैं जो निश्चित ही ड्राइंग रूम और बालकनी के फूलों से अधिक खुशबू दे रहे हैं, यही इनकी विशेषता भी है, यह वनफूल अकेले नहीं महकते, इनकी खुश्बू सामुदायिक होती है और इनमें समूची प्रकृति नर्तन करती है। कहते भी हैं वनबेला फूलती है तो समूचा वन महकता है और जब समूचा वन महकता है तो प्रकृति अपने सबसे सुंदर रूप में होती है तो दोस्तों! आज आपके हरदिल अज़ीज़ पंकज भैया का जन्मदिन है। उनके कईये इसी सुंदर का स्वप्न हैं। यह फ़ोटो कई मामलों में विशेष है। अंग्रेजी मैगज़ीन के कवर को देखिए इसकी जबान भी भारत के सुदूर देहात के लिए अबूझ दुनिया का जादुई लोक है। इस पर छपे हर्फ़ ही केवल अतिशयता का संसार नहीं रचते बल्कि तस्वीरें भी लौकिकता से ऊपर उठती जान पड़ती हैं। और हुजूर इल्म से शायरी बेशक न आती हो लेकिन देखिए इल्म, प्रतिभा और मेहनत का सुंदर संगम हो तो ऐसे दूर के जादुई लोक को अपने भीतर रखे आम मानस में अलग तरह से बैठे मैगज़ीन भी जनता के अभिनेता, कलाकार को, सोने के दिल वाले हिरामन को अपने कवर पर रखते हैं, गौरवान्वित होते हैं। कौन कहता है कि पंकज त्रिपाठी नाम के इस अभिनय की पाठशाला व्यक्तित्व का आयाम केवल मसान, नील बट्टे सन्नाटा, बरेली की बर्फी के नरोत्तम मिश्र और मुन्ना माइकल के बाली, गैंग्स ऑफ वासेपुर के सुल्तान, मैंगो ड्रीम्स के सलीम, गुड़गांव के केहरी सिंह, पाउडर का नावेद अंसारी, मिर्ज़ापुर के कालीन भैया, योर्स ट्रूली के विजय, स्त्री के रुद्र भैया या अंग्रेजी में कहते हैं के फिरोज से ही तय होता है।

अभी किस्से और हैं अय्यारी और है जिसको लेकर पंकज त्रिपाठी आपसे रूबरू होंगे। उनके सब किरदार उनकी प्रतिभा और उनके अभिनय के अलग-अलग प्रयोगों की बरसों की मेहनत का परिणाम है और यही कारण है कि वह अब किसी भी भाषायी और क्षेत्रीय पहचानों से ऊपर अब अंतरराष्ट्रीय पटल (कृष हेम्सवर्थ के साथ ढाका) और कई अन्य भाषा-भाषियों के कला के अन्य रूपों में (तेलुगु, तमिल सिनेमा) कार्यरत और चाहे जाने वाले एक्टर्स में से हैं। यह एक दिन की मेहनत नहीं बल्कि सतत जिद का परिणाम है।

अंग्रेजी के मैगज़ीन और इसके कवर पर अंकित छवि केवल मॉडलिंग वाला किरदारी मामला नहीं है बल्कि यह कह रहा है कि उस अभिनेता के मैनरिज्म का यह पहलू आपने नहीं देखा तो अब तक क्या देखा। तो देखिए स्टाइल, चलने का ढंग, वह ठसक, राजस, फिर भी आपका अपना। यह गाँव की फसल, अपनी मेहनत और ईमानदार लगन से महानगर की जरूरत बन गई है। जिसमें सबसे अधिक हिस्सेदारी और भरोसे की बात उसके चाहने वालों की है। बहुत कम कलाकारों को अपने चाहने वालों का यह भरोसा नसीब होता है । यह एक मैगज़ीन के कवर ब्यॉय की तस्वीर भर नहीं बल्कि एक कलाकार के बहुआयामी व्यक्तित्व की एक और छवि है और यकीन जानिए इस तस्वीर और कवर स्टोरी ने कई गुदड़ी के लालों को सुंदर का सपना देखने को प्रेरित किया है। कस्तूरी सरीखे महकते रहिये, इस संसार को थोड़े सुगंध की जरूरत है, आप उसके माध्यम बने हैं। यह वाकई आप सरीखे ग्रामवन बेला के फूलने की रुत है। अभी तो फसाने और आने हैं और अभी तो यह बरसात की पहली बूंद के धरती पर उतरने और उसकी सोंधी सुगंध के चहुं ओर फैलने की मानिंद है। ”इस खुशबू को ‘पेट्रिकोर’ कहते हैं, जो ग्रीक भाषा के शब्द पेट्रा से बना है, जिसका अर्थ स्टोन या आईकर होता है, और माना जाता है कि यह वही तरल है, जो ईश्वर की नसों में रक्त के रूप में बहता है।” यह कलाकार और उसकी अलग छवियाँ अपने ईमानदार काम से ईश्वरीय नसों में रक्त की मानिंद संचरणशील है। वह बरसात की वही सोंधी गंध है जो आपके नथुनों में उतरते ही आपकी जड़ता तोड़ अपनी ओर खींच लेता है।

आप अभिनय की तमाम विधाओं को पढ़ते रहिये, किरदार निभाने की कथाएं सुनिए और मेथड एक्टिंग के “स्कराउलिंग अंडर द स्किन ऑफ द कैरेक्टर” या “मैजिक ऑफ इफ” की संकल्पना को समझहने की कोशिश कीजिए पर किस्से और उसमें
दर्ज किरदार को ओढ़ते वक़्त अभिनेता जब खेलता है वह असल होता है। क्योंकि उसमें अभिनेता का अपना पाठ आकार ले रहा होता है। इस प्रक्रिया में किताबी सिद्धांत अपने रूप में बदल जाता है। पंकज त्रिपाठी लगातार यह प्रयोग करते हैं और हम देखते हैं कि वह हमेशा इस सिद्धांत को चुनौती दे देते हैं। बिना अतिनाटकीय हुए कालीन भइया का चरित्र रूह में सिहरन पैदा करता है तो सौ सच्चाइयों को जीता केहरी सिंह का किरदार घृणा के सौ मौके दे देता है तो रुद्र भैया या नरोत्तम मिश्र अपने से प्यार करने के हजार मौके देते हैं। यह एक बेहतर अभिनेता की अपना गढ़ा हुआ क्राफ्ट है। उसकी अपनी सैद्धांतिकी है।

मैं सोचता हूँ, इन सबसे परे इस बदलाव और लंबी यात्रा के पीछे की प्रेरक कहाँ है? मेरे एक और अज़ीज़ रंगकर्मी हबीब तनवीर के मशहूर नाटक ‘कामदेव का अपना, बसंत ऋतु का सपना’ का गीत उनके लिए याद आ रहा है जो इस हीरा-मन कलाकार के पीछे चुपचाप मुस्कुराती प्रेरणा शक्ति बन खड़ी हैं और उनके लिए सच में यही गीत इस वक़्त मुझे सबसे मुफीद लगता है –
“मुझे पता है मेरे बन की रानी कहाँ सोई है/
जहाँ चमेली महक रही है और सरसो फूली है/
जहां कनेर के पेड़ पे, पीले – पीले फूल सजे हैं/
आस – पास कुछ उगे फूलों की भी बेल चढ़ी है/
जहां गुलाब के, गुलअब्बास के फूल ही फूल खिले हैं…”

यह वाकई उसी वनबेला का सुवाषित समय है। ईश्वर यह समय बनाये रखे। आप सब पंकज त्रिपाठी जी को कोटिशः शुभकामनाएं दीजिये। जिससे वे सदा ऐसे ही अभिनय के क्षेत्र में कमाल और धमाल करते रहें।
#सोने_के_दिल_वाला_हीरामन
#जनता_का_अभिनेता
Pankaj Tripathi
Mridula Tripathi

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