राजभाषा हिंदी दो शब्दों से मिलकर बना है राज और भाषा। इसका सामान्य अर्थ है राजकाज की भाषा या शासन की भाषा। भारत में कई बार विदेशी आक्रमण हुए जिसमें शासन की भाषा अलग एवं शोषित की भाषा अलग होती थी। इस कारण जनता को सरकारी काम कराने के लिए शासन की भाषा को सीखना पड़ता था। मुगल शासन के दौरान देश में राजकाज की भाषा फारसी थी, अंग्रेजी शासन के दौरान राजकाज की भाषा अंग्रेजी थी। इसी प्रकार भारत के अलग-अलग हिस्सों में भी राजकाज की भाषा विदेशी शासन के अनुसार ही थी जैसे- गोवा और पुद्दुचेरी। भारत 1947 में आज़ाद हुआ उसके बाद 14 सितंबर 1949 को भारत के महापुरुषों ने एक मत से हिंदी को राजभाषा स्वीकार कर लिया। लेकिन राजनीतिक कारणों से हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत नहीं हो पाई। सांस्कृतिक, राजनैतिक, भावनात्मक और व्यावहारिक दृष्टियों से समीक्षा करने के बाद संविधान सभा ने संविधान के भाग-17 के अनुच्छेद 343 से 351 तक का प्रावधान किया गया है। इन अनुच्छेदों में राजभाषा स्वरूप, उसके उपयोग क्षेत्र और विकास के संबंध में स्पष्ट व्यवस्था की गई है जो संक्षेप में निम्नानुसार है।
अनुच्छेद 343 के अंतर्गत हिंदी को राजभाषा के स्वरूप को निश्चित किया गया है।
अनुच्छेद 344 के अंतर्गत ‘राजभाषा’ को उचित स्थान दिलाने के लिए संसदीय आयोग और संसदीय समित की व्यवस्था की गई।
अनुच्छेद 345 में राज्यों की राजभाषा के संबंध में प्रावधान किया गया है।
अनुच्छेद 346-347 में एक राज्य से दूसरे राज्य या संघ के बीच स्वर-संपर्क के लिए भाषायी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में, अधिनियमों, विधेयकों आदि के लिए भाषायी व्यवस्था की गई है।
अनुच्छेद 349-350 के अंतर्गत भाषा संबंधी कुछ विधियों को अधिनियमित करने के दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
अनुच्छेद 351 में हिंदी के विकास के लिए आवश्यक निर्देश दिए गए हैं ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति की वाहिका बन सके।
संविधान के अनुच्छेद 120 में प्रावधान किया गया है कि संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा, परंतु यथास्थिति लोकसभाध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् ‘या अंग्रेजी में’ शब्दों का लोप किया जा सकेगा।अनुच्छेद 210 के अनुसार राज्यों के राज्य विधानमंडलों का कार्य अपने-अपने राज्य कि राजभाषाओं में या हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा, परंतु यथास्थिति विधानसभा अध्यक्ष या विधान सभा परिषद का सभापति किसी सदस्य को उनकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् ‘या अंग्रेजी में’ शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
इससे स्पष्ट होता है कि संविधान निर्माताओं ने राजभाषा जैसी जटिल व्यवस्था पर गंभीरता पूर्वक विचार करके भविष्य में होने उत्पन्न होने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए समुचित व्यवस्था पहले ही कर दी है।
8वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाओं का उल्लेख है। इस अनुसूची में आरंभ में 14 भाषाएँ जिनमें असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलगु, उर्दू थी। बाद में सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को शामिल किया गया।
इसी क्रम में राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा अधिनियम 1976 तथा समय-समय पर राष्ट्रपति के आदेश पारित होते रहे जिससे हिंदी को सरकारी कार्यालयों में पूरी तरह से लागू किया जा सके। हिंदी के विकास के लिए सरकार लगातार कदम उठा रही है और काफी सफलता भी मिली है। राजनीतिक कारणों से भले ही हिंदी का विरोध हो रहा है लेकिन यह भारत के बहुत बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली भाषा है और यह संपर्क भाषा के रूप में भी कार्य करती है। आज हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, हिंदी सीखने के लिए विदेश से भी प्रति वर्ष अनेक विद्यार्थी आ रहे हैं। हम कब तक उधार की भाषा से काम चलते रहेंगे, भारत के सभी वर्ग के लोगों के लिए समान अवसर प्रदान करती है इसलिए यह जन भाषा है। जरूरत है देश के लोग अपनी भाषा को लिखने पढ़ने एवं बोलने में संकोच न करें बल्कि गर्व करें।

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *