soch badlo

कविता : सोच बदलो

आगे निकलने की होड़ छोड़ मिलकर कदम बढ़ाओ बदलो न रास्ता मुश्किल में देख बन दुख में साथी दूसरों की हिम्मत बँधाओ घर, बाहर बहू -बेटी, महसूस सुरक्षित करें हो न शोषण मिले सम्मान ऐसा तुम संसार बसाओ। हो न… Read More

vishwas

कविता : करते जो खुद पर विश्वास

करते जो खुद पर विश्वास रचते वे ही नया इतिहास… बिना फल की इच्छा करे कर्मों पर हो अटल विश्वास धरती ही नहीं अंबर छू लेने का जिनके मन में बुलंद अहसास रचते वे ही नया इतिहास… छोड़ उम्मीद दूसरों… Read More

maglesh

कविता : मंगलेश डबराल जी के याद में

कवि क़भी मरता नहीं हैं जिंदा रहता हैं हमेशा हरदम हरपल हर समय, तब तक जब तक यह सृष्टि रहतीं हैं, और रहता हैं बुद्धि विवेक समझ का राज्य प्रेम सौहार्द्र का वातावरण, तब तक रहता हैं जिंदा कवि लोगों… Read More

hind desh

कविता : हिंद देश की तपो भूमि

जिस धरती पर लेकर के जनम ईश्वर भी हैं हर्षित होते जहाँ अपनी लीला करने को हैं देवता आकर्षित होते जहाँ नदियों का पावन संगम जहाँ सागर गाते हैं सरगम जहाँ पर प्रकृति पूजी जाती जहाँ पत्थर में भी मिलें… Read More

samajh

कविता : समझ नहीं पाया

कभी गमों के साये में जिये तो कभी खुशी के महौल में। जिंदगी को जीने के कई नये-नये तरीके मिले। बदलते मौसम के साथ हम भी जीने लगे। और इरादे भी समयानुसार हम भी बदलने लगे।। भले ही ये सब… Read More

kaha gaya

कविता : मोरों का नर्तन कहाँ गया

वो मोरों का नर्तन कहाँ गया ! फूलों का उपवन कहाँ गया ! अरे कहाँ गए सब मेरे अपने , हम सबका आँगन कहाँ गया ! सबका ही सुख है अपना सुख, वो जीवन का दर्शन कहाँ गया ! रिश्तों… Read More

diwali

कविता : दीवाली पर मिलेगी

दीप जलाओ तुम सब। करो अंधकार को दूर। रोशनी कर लो मन में। इस दीपाली पर।। घर का कचड़ा साफ करो। मन को करो तुम शुध्द। जग मग कर दो गली मौहल्ले और अपना घर। दिलो में खुशीयाँ भर दो,… Read More

prakashparv

कविता : प्रकाश पर्व

करो प्रकाशित घर आँगन दुनिया से तम दूर भगाओ पहले सब को खुशियां बांटो फिर अपने घर दीप जलाओ अपने मन को निर्मल कर लो यारा लोभ मोह सब दूर करो बस करो मदद एक दूजे की दिल से दिल… Read More

sahsa maun mukhar hua

कविता : सहसा ! मौन हुआ मुखर

एक दिन देखा मैंने, सहसा ! एक काले से साए को बाहर आते, आज के आदमी सा, कुछ सहमा, कुछ सकुचाया, उस साए ने, बाहर आ प्रश्न किया…… क्या तुम अब तक ज़िन्दा हो ? …कैसे ? मुझे लगा मैं… Read More

jindgi aur prakritia

कविता : ज़िंदगी और प्रकृति

रात की तन्हाई में, ख़ामोश नम निग़ाहों से ! ओस की बूंद बन, फूलों पर ढुलक पड़ी मैं !! दिन के अंधियारे में, महफ़िल की तन्हाईओं से ! रोशनी की किरण बन, रोशनदान में बिखर गयी मैं !! मंज़िल की… Read More