ब्रजमंडल का अनूठा महोत्सव
होली का पर्व निराला
प्रकृति में एक नयी
मादकता है जागी।।
रोम-रोम में मस्ती छाई
घर-घर में गुलाल लाई।।
होली आई रंगो का
त्यौहार लाई
रंग गुलाल उड़ाएंगे
होली हम सब मिल मनाएंगे।।
रंग गुलाल से सजी थाल
मेवा मिष्ठान ले दादी आई
गुड़िया रानी ने भरी पिचकारी।।
प्रेम के रंग में
सबको रंग डालेंगे
नफरत को दूर भगाएंगे।।
होली के रंग में रंगे सारे
रंगो में झूमे सारे।।
ऋतुओं पर ठहरा गुलाल
प्रकृति भी कर आई श्रृंगार
आम्र की मज्जिरियो पर
भ्रमरें डोले
थाप ढपली पर नाचे सारे
बिहारी भी बोले राधे-राधे
प्रकृति विविध रंगो से भरी
देख सभी सौंदर्य को निहारे।।
नीला आकाश मानो अनंत
ऊंचाई को अपने में समेटे है,
उसमे यदा-कदा उभरने वाले
सफेद व काले बादलों की आकृति,
उगते हुए सूरज की
सुंदर स्वर्णमय रोशनी,
रात्रि के अंधेरे से
घिरा हुआ घना-कला
आकाश और उस पर
सजे हुए चमकते तारे और
उसमे स्वच्छ चांदनी का
प्रकाश बिखेरता हुआ चंद्रमा।।
हरियाली ओढ़ी हुई
धरती, कही रेत, कही पानी,
कही पहाड़ तो कहीं मिट्टी,
मिट्टी भी विविध रंगों की
कही पर लाल, कही पीली,
कही मटमेली तो कहीं काली।।
इस धरती से लेकर
आकाश तक प्रकृति में
अनेक रंगो से बिखरी सारी।।
होली के आते ही
एक नवीन रौनक,
नवीन उत्साह एवं
उमंग की लहर दौड़ने लगी
आलाबद्ध , नर – नारी सब में
प्रेम की मिठास घोलने लगी।।
गुलालो से तन सजा
फूलो से यह मन सजा
रंगो से प्रकृति सजी
हरी चुनरी
अंबर है नीला
तारे झिलमिल करे
रीत की प्रीत देखी
राधा की मित देखी
मीरा की भक्ति परवान चढ़ जाए।।
वृंदावन की गलियां ,
रंग गुलाल से भरी सारी।।
कृष्ण ने छेड़ी
मुरली की धुन
राधा है दोड़ी आई
प्रेम में मगन गोपियां सारी
मीरा ने छेड़ी भक्ति की तान
द्रोपदी की मित्रता रंग लाई
अपने रंग में रंग दे बिहारी।।
रंग-रंगीली मस्ती चढ़ी परवान
सखियों की जब टोली आई
ना कोई भी कतरा कोरा रहे,
प्रेम के एक रंग में रंगे सारे
रंग लगाय एक दूजे को
सब मस्ती में झूम जाए।।
सारा आकाश मंडल
गुलाल के रंगो से ढक जाए
धरती माता श्री वृषभानु
नंदिनी राधारानी की
पिचकारी से सतरंगी हो जाए।।
होली एक,
आनंदोल्लास का
त्यौहार है,
जिसमें रिश्तों की मिठास है
रंगो की शान है
उल्लास उमंग की लहरे है, तो
बुराइयों का कही अंत है।।
होली सम्मिलन ,
मिश्रण एवं एकता का
पर्व है,
यही इसका मूल उद्देश्य है।।