सब हित मीत हमजोली हो
प्यार इश्क़ की बोली हो
ग़र मिल जाये भूले भटके
तब समझो पर्व ये होली हो
उसे हर रंग गुलाल अबीर हो
सब अल्हड़ मस्त फ़क़ीर हो
हर गम से दूर, कबीर हो
ख़ुशियों से भरा हर झोली हो
तब समझो पर्व ये होली हो
जब मिटे आग विद्वेष हो
जग लागे अपना देश हो
हर मूरत कान्हा का भेष हो
मचलता गोपियों की टोली हो
तब समझो पर्व ये होली हो
जब जग में कोई भी भूखा ना
और खाये कोई भी रूखा ना
कोई भी किसी से रूठा ना
जब सबकी आँख मिचोली हो
तब समझो पर्व ये होली हो
जब बहे प्यार की गंगा हो
सब तन मन से तो चंगा हो
और कहीं कोई ना दंगा हो
मिट जाये बम बारूद गोली हो
तब समझो पर्व ये होली हो ।।