बसंत की बेला आई
मन में महक जगाई
अब तू भी जी ले कुछ पल को
मन में यह फूल खिलाई
बसंत की बेला आई।।
मन की बागियों में
अब तू हंसियो के फूल खिला दें
यादों की सोंधी सी मिट्टी में
अब तू खुद को छिपा से।।
खुशबू से भर दे
हर पल को
अब तू उन्हें महका दे।।
हंस पड़ तू अनायास ही
आसपास के विहंग को
भी तू महका दे।।
संग में लगे जैसे
जागे पारिजात ,
चमेली के फूल
उन्निंदे सपनो को
अब तू जगा दे
चंदन सा अंग
अब तू यू
महका दे।।
सत्य नहीं
झर जाएंगे यह
रूप ,गंध ,खुशबू
वैसे भी पर ,
अब तू भी महसूस कर
क्यों आज जो है ,
वह को नहीं
बसंत बेला आई।।