1- “जब सांझ ढले तुम आती हो “ जब सांझ ढले तुम आती हो आती है तब इक मंद बयार छेड़े गए हों जैसे मन के तार झंकृत होता है ज्यों अंतर्मन जैसे दूर कहीं रहा हो कीर्तन जैसे कोई… Read More

1- “जब सांझ ढले तुम आती हो “ जब सांझ ढले तुम आती हो आती है तब इक मंद बयार छेड़े गए हों जैसे मन के तार झंकृत होता है ज्यों अंतर्मन जैसे दूर कहीं रहा हो कीर्तन जैसे कोई… Read More
“सूट पहन के , लगा के चश्मा कहाँ चले ओ मतवाले , गिटपिट इंग्लिश बोल रहे हो हिंदी की गले में तख्ती डाले” मैंने यूँ ही पूछा? “चले हम फीजी ,हिंदी के लिये जल मत ओ बुरी नजर वाले पूछा… Read More
तो हस्तिनापुर के समीप इंद्रप्रस्थ जो कि अब दिल्ली के नाम से जाना जाता है , यही मेरे व्यंग्य का खांडव वन रहा है ।अब व्यंग्य के कई अर्जुन मेरे इस खांडव वन अर्थात व्यंग्य लोक को जलाने पर आतुर… Read More
पाकिस्तान के भूतपूर्व गृहमंत्री शेख रशीद दक्षिण एशिया की राजनीति में मनोरंजन के प्रमुख साधन माने जाते रहे थे , ये हजरात वही हैं जो इंडिया पर पाव किलो वजन के परमाणु बम मारने की धमकी दिया करते थे। जब… Read More
जुड़ती है सड़क एक सड़क से बासी रोटी ने महका रखा है घर को मैं कौन,निश्चित मैं मौन हूँ टूटी हैं बेड़ियां ,लड़कर थकी नहीं ,सड़क का कूड़ा , समय से लड़ती कूची दिमाग का दही बनाती है कविता ”… Read More
प्रश्न – हिंदी साहित्य के वर्तमान परिवेश में मठ और मठाधीशों की क्या स्थिति है ? उत्तर- हिंदी साहित्य इस समय मठ और मठाधीशों के कम्रिक रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है । कोरोना काल में यात्रा करने की… Read More
“काठ का घोड़ा,लगाम रेत की ,नदी पार तैयारी घटिया कला ,अछूती भाषा,बनते काव्य शिकारी ” कविवर अष्टभुजा शुक्ल की ये कविता ,आजकल घोषित हो रहे काव्य पुरस्कारों के बाबत बिल्कुल सटीक है ।लोग पुरस्कार पाते हैं तब नहीं कहते है… Read More
बोलो जुबाँ केसरी (व्यंग्य) ‘कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगे जाने कैसे लोग वो होंगे जो उसको भाते होंगे “ जी हाँ उसको गुटखा बहुत भाता था ,वो गुटखे के बिना न तो रह सकता था और न… Read More
सब कुछ समेटा जा रहा था , आंदोलन समाप्त हो चुका था । आंदोलन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से जुड़े लोग भी अपने उन पुराने दिनों में लौटने की तैयारी में जुटे थे ,जिनको वो काफी पीछे छोड़… Read More
“ना रूपया ना पैसा ना कौड़ी रे ये मोटू और पतलू की जोड़ी रे मोटू और पतलू रे” ये गीत गाते हुए प्रकाशक के लाये हुये लड्डू खाते हुए मोटू ने गब्बर स्टाइल में कहा – “अरे पतलू भाई ,… Read More