मुखर्जी-दार-बउ : रिश्तों का तानाबाना

स्त्री सशक्तीकरण की गूंज आज हर गली, मुहल्ले, शहर में सुनने को मिलती है। साहित्य से लेकर सिनेमा तक इसके प्रभाव से अछूता नहीं है। बड़े-बड़े मंच पर स्त्री विमर्श की चर्चा की जाती है। उनकी समस्याओं को अभिव्यक्ति दी… Read More

हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया : देव आनंद (जन्मदिवस पर विशेष)

हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाकर, ज़िंदगी के साथ रोमांस करने वाले हिंदी सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देव आनंद जी का आज जन्म दिवस (26 सितंबर, 1923 – 3 दिसम्बर 2011) है। इनका पूरा नाम धर्मदेव आनंद था। देव साहब… Read More

मूवी रिव्यू : ज़ीरो डिग्री टेम्परेचर वाली फ़िल्म ‘पल पल दिल के पास’

आज से 36 साल पहले ‘बेताब’ फ़िल्म के ढाई किलो के हाथ वाले डायलॉग से आज भी सिने प्रेमियों के दिल में जगह कायम रखने वाले सनी देओल के बेटे करण देओल ने सिनेमा की दुनिया में कदम रख दिया… Read More

मूवी रिव्यू : विश्वास और अंधविश्वास का द्वंद है ‘द जोया फैक्टर’

द जोया फैक्टर बनाने वाले अभिषेक शर्मा ‘तेरे बिन लादेन’ और ‘शौकीन’ जैसी हलकी-फुलकी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। उन्होंने न्यूक्लियर टेस्ट की सच्ची घटना पर आधारित ‘पोखरण’ का निर्देशन भी किया था। इस बार ‘द जोया फैक्टर‘ के… Read More

मूवी रिव्यू : ‘रुख’

एक ऐसी फिल्म जो आपको एक अलग अनुभव प्रदान करती है, यह भी बताती है कि जीवन कितना कठिन हो सकता है लेकिन अगर आप सामना करने के लिए तैयार हैं तो सब आसान हो जाता है। एक ऐसी थ्रिलर… Read More

भारतीय सिनेमा का मंत्र ‘ऊँ प्रेमाय स्वाहा’

“संस्काराद् द्विज उच्च्यते।” संस्कारों से मनुष्य का निर्माण होता है और अच्छे संस्कार मनुष्य को मनुष्यता सिखाते हैं। समयांतराल पर ये संस्कार मनुष्य समाज, साहित्य और सिनेमा से ग्रहण करता है। हर युग के अपने संस्कार होते हैं। किंतु कुछ… Read More

मूवी रिव्यू : सही जगह वार करती ‘ड्रीम गर्ल’

आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ का निर्देशन किया है राज शांडिल्य ने। जो कपिल शर्मा के लिए कई शो लिख चुके हैं। कपिल की शो की सफलता का आंकलन करते समय राज ने संभवत: इस बात पर भी विचार… Read More

अबोध से कलंक तक चन्द्रमुखी उर्फ़ ‘माधुरी दीक्षित’ विशेष

15 मई 1967 को मुंबई में जन्मी सबके दिलों की धड़कन धक धक गर्ल और देवदास की चंद्रमुखी यानी माधुरी दीक्षित एक सफ़ल भारतीय सिनेमा अभिनेत्रियों में से एक है। हिंदी सिनेमा के 80, 90 के दशक तक एक मुख्य… Read More

क्यों घटता जा रहा है सिनेमा में हिंदी महत्व ?

14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी भाषा को अखण्ड भारत की प्रशासनिक भाषा के ओहदे से नवाजा था। यही वजह है कि 1953 से प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के… Read More

पंकज त्रिपाठी : अपने ही रचे क्राफ्ट को बार-बार तोड़ता नायक

एक बेहतर अभिनेता वह है जो अपने रचे हुए क्राफ्ट को बार बार तोड़ता है, उसमें नित नए प्रयोग करता है और अपने दर्शकों, आलोचकों, समीक्षकों को चौंकाता है। बीते सालों में पंकज त्रिपाठी ने लगातार इस तरह के प्रयोग… Read More