व्यंग्य : अबकी बार, तीन सौ पार

“नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही  नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही “ जी नहीं ये किसी हारे या हताश राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता की पीड़ा या उन्माद नहीं है। बल्कि हाल के दिनों में तीन सौ… Read More

व्यंग्य : तो क्यों धन संचय

हाल ही में एक ट्वीट ने काफी सुर्खियां बटोरी , “पूत कपूत तो क्यों धन संचय पूत सपूत तो क्यों धन संचय” जिसमें अमिताभ बच्चन साहब ने सन्तान के लिये धन एकत्र ना करने का स दिया उपदेश दिया है… Read More

व्यंग्य : मेला ऑन ठेला

“सारी बीच नारी है, या नारी बीच सारी सारी की ही नारी है, या नारी ही की सारी” जी नहीं ये किसी अलंकार को पता लगाने  की दुविधा नहीं है ,बल्कि ये नजीर और नजरनवाज नजारा फिलहाल लिटरेरी मेले का… Read More

व्यंग्य : हैप्पी बर्थ डे

“बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का  जो काटा तो कतरा ए लहू तक ना निकला” ऐसा ही कुछ रहा ,इस हफ्ते,,जब कश्मीर का नया जन्म हुआ ।धमकी,ब्लैकमेलिंग,और सुविधा की राजनीति करके उसे इंसानियत,कश्मीरियत,जम्हूरियत का मुलम्मा चढ़ाने वालों के… Read More

व्यंग्य : दिवाली ‘पटाखा’ और ‘फुलझड़ियाँ’

जब से इस देश में सनी लियोनी टाइप्ड विदेशी पटाखा क्या आया है तब से न जाने क्यों घर के पटाखे सीलन भरे ही नज़र आने लगे हैं । अब तो माहौल ही ऐसा है कि अपने घर का बम… Read More

व्यंग्य : मन का रावण

हाँ, तुम्हारी मृदुल इच्छा हाय मेरी कटु अनिच्छा  था बहुत माँगा ना तुमने किंतु वह भी दे ना पाया था मैंने तुम्हे रुलाया… ये एक तसल्ली भरा सन्देश है उन लोगों की तरफ से जिन्होंने इस बार मन के रावण… Read More

व्यंग्य : हैप्पी हिन्दी डे

हे कूल डूड ऑफ़ हिंदी, टुडे इज द बर्थडे ऑफ़ हिंदी, ईट्स आवर मदर टँग एन प्राइड आलसो, सो लेटस सेलेब्रेट। यू आर कॉर्डियाली इनवाटेड।लेट्स मीट एट 8 पीएम, इंडीड देअर विल भी 8 पीएम, वेन्यू ब्लैक डॉग हैंग आउट… Read More

नॉट आउट @हंड्रेड (व्यंग्य)

“ख्वाबों,बागों ,और नवाबों के शहर लखनऊ में आपका स्वागत है”  यही  वो इश्तहार है    जो उन  लोगों ने देेखा था जब लखनऊ की सरजमीं पर पहुंचे  थे। ये देखकर वो   खासे मुतमइन हुए थे । फिर जब जगह जगह… Read More

व्यंग्य : लोहा टू लोहा

आजकल देश में मोटा भाई कहने का चलन बहुत बढ़ गया है। माना जाता है कि बंधुत्व और दोस्ती का ये रिश्ता लोहे की मानिंद सॉलिड है। पहले ये शब्द भैया कहा जाता था ,लेकिन जब से अमर सिंह ने… Read More

व्यंग्य : तब क्यों नहीं…

“ये जमीं तब भी निगल लेने को आमादा थीपाँव जब जलती हुई शाखों से उतारे हमनेइन मकानों को खबर है ना मकीनों को खबरउन दिनों की जो गुफाओं में गुजारे हमने “ये सुनाते हुए उस कश्मीरी विस्थापित के आँसूं निकल… Read More