व्यंग्य : वर्क फ्रॉम होम

आये दिन अख़बारों में इश्तहार आते रहते हैं कि घर से काम करो ,घण्टों के हिसाब से कमाओ,डॉलर,पौंड में भुगतान प्राप्त करो।जिसे देखो फेसबुक,व्हाट्सअप पर भुगतान का स्क्रीनशॉट डाल रहा है कि इतना कमाया,उतना माल अंदर किया ।महीने भर की… Read More

व्यंग्य : अंकल कम्यूनलिज्म

“वो सादगी कुछ भी ना करे तो अदा ही लगे  वो भोलापन है कि बेबाकी भी हया ही लगे अजीब शख्स है नाराज हो के हँसता है  मैं चाहता हूँ कि वो खफा हो तो खफा ही लगे” पोस्ट ट्रुथ… Read More

व्यंग्य : कागज़ नहीं दिखाएँगे

युग के युवा,मत देख दाएं और बाएं और पीछे ,झाँक मत बगलें न अपनी आँख कर नीचे,अगर कुछ देखना है  देख अपने वे वृषभ कंधे,जिन्हें देता निमंत्रण सामने तेरे पड़ा, युग का जुआ “ युग का जुआ युवाओं को अपने… Read More

व्यंग्य : मेरा वो मतलब नहीं था

“जामे जितनी बुद्धि है,तितनो देत बताय वाको बुरा ना मानिए,और कहाँ से लाय” देश में धरना -प्रदर्शन से विचलित ,और अपनी उदासीन टीआरपी से खिन्न फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अति उत्साही लोगों ने सोचा कि तीन घण्टे की फिल्म में… Read More

व्यंग्य : लोग सड़क पर हैं

“नानक नन्हे बने रहो,  जैसे नन्ही दूब बड़े बड़े बही जात हैं  दूब खूब की खूब” श्री गुरुनानक देव जी की ये बात मनुष्यता को आइना दिखाने के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। ननकाना साहब में जिस तरह गुरूद्वारे को घेर… Read More

व्यंग्य : डर दा मामला है

“सबसे विकट आत्मविश्वास मूर्खता का होता है, हमें एक उम्र से मालूम है – हरिशंकर परसाई”। फिल्मों की “द फैक्ट्री “चलाने वाले निर्देशक राम गोपाल वर्मा महोदय ने डर के लेकर दिलचस्प प्रयोग किये।वो अपनी किसी फेम फिल्म में डर… Read More

व्यंग्य: आपको क्या तकलीफ है

रिपोर्टर कैमरामैन को लेकर रिपोर्टिंग करने निकला।वो कुछ डिफरेंट दिखाना चाहता था डिफरेंट एंगल से ।उसे सबसे पहले एक बच्चा मिला । रिपोर्टर ,बच्चे से-“बेटा आपका इस कानून के बारे में क्या कहना है”? बच्चा हँसते हुये-“अच्छा है,अंकल इस ठण्ड… Read More

व्यंग्य : कौआ कान ले गया

“हुजूर,आरिजो रुख्सार क्या तमाम बदन मेरी सुनो तो मुजस्सिम गुलाब हो जाए, गलत कहूँ तो मेरी आकबत बिगड़ती है  जो सच कहूँ तो खुदी बेनकाब हो जाए” इधर सताए हुए कुछ लोगों के जख्मों पर फाहे क्या रखे गए उधर… Read More

व्यंग्य : पापा नहीं मानेंगे

“खुदा करे इन हसीनों के अब्बा हमें माफ़ कर दें, हमारे वास्ते या खुदा, मैदान साफ़ कर दें” एक उस्ताद शायर की ये मानीखेज पंक्तियां बरसों बरस तक आशिकों के जुबानों पर दुआ बनकर आती रहीं थीं, गोया ये बद्दुआ… Read More

political chair

व्यंग्य: ये कैसे हुआ

फ़ांका मस्ती ही हम गरीबों की विमल देखभाल करती है एक सर्कस लगा है भारत में जिसमें कुर्सी कमाल करती है “। उस्ताद शायर सुरेंद्र विमल ने जब ये पंक्तियां कहीं थी तब उन्होंने शायद ये अंदाज़ा लगा लिया था… Read More