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कविता : मुकद्दर मजदूर का

रात भर सपनों में खुशहाल संसार देखा, सुबह हुई तो काँच सा बिखरा हुआ मंजर देखा, चहुं ओर चिल्लाती चिखती खामोशी दिखी, वही काँपती हाथ और वही बिफरा मजदूर दिखा | चाहता है ‘मनोहर’ भी, हर मजदूर का लेखा बदलना,… Read More

औरत - तेरी ज़िन्दगी का एक क्षण

कविता : औरत तेरी ज़िन्दगी का एक क्षण

प्यास बुझाये अरमानों की जो, जी लें हम एक क्षण वो, क्यों ज़िन्दगी का वह एक क्षण नहीं मिलता ? तन का मिलना भी क्या मिलना, जो मन से समर्पन नहीं मिलता, क्यों ज़िन्दगी में वह प्रेम का क्षण नहीं… Read More

गीत : छोड़ दो

की अपना देश है महान। जिसमें रहते सर्वधर्म इंसान। विश्व में अलग ही है पहचान। जिसे लोग कहते हिंदुस्तान। ये देश है बहुत महान।। जो नारी की लाज लूटते है। नहीं उनको देते है सम्मान। चाहे वो मुल्ला हो या… Read More

कविता : चाहकर भी नही भूला

चाहकर भी मैं भूल, नहीं सकता तुम्हें। देख कर अनदेखा, कर सकता नही तुम्हें। दिलकी धड़कनों को, कम कर सकता नहीं। क्योंकि ये दिल है, जो मानता ही नही।। माना कि मुझ से, नफरत है तुम्हें। मेरी बातें से तुम्हें,… Read More

ग़ज़ल : मंज़िलें पास नहीं होतीं

मंज़िलें पास नहीं होतीं, ज़रा दौड़ना सीखो  सफर की रुकावटों को, ज़रा तोड़ना सीखो  ज़िंदगी की राह में मिलते हैं अनेक चौराहे, यूं हौसले की गाड़ी को, ज़रा मोड़ना सीखो होती नहीं हर चीज़ हर किसी के मुकद्दर में, बाक़ी ख़ुदा की मर्ज़ी पे, ज़रा छोड़ना सीखो न मिलता कभी सुकून अपनों को भुला कर, उनसे टूटे हुए रिश्तों को, ज़रा जोड़ना सीखो चलते हैं जुबाँ के तीर हर तरफ से कितने ही, तुम बधिरता के कवच को, ज़रा ओढ़ना सीखो निशब्द होना भी तो ज़िंदगी पे बोझ है ‘मिश्र’, जिगर में भरे ज़हर को, ज़रा निचोड़ना सीखो 00