औरत - तेरी ज़िन्दगी का एक क्षण

प्यास बुझाये अरमानों की जो,
जी लें हम एक क्षण वो,
क्यों ज़िन्दगी का वह एक क्षण नहीं मिलता ?
तन का मिलना भी क्या मिलना,
जो मन से समर्पन नहीं मिलता,
क्यों ज़िन्दगी में वह प्रेम का क्षण नहीं मिलता ?
चिलचिलाती धूप और तपता सूरज,
शितलता हवा की जाने कहाँ गुमसुम ?
बुझाये जो तपन औरत तेरी,
मनोहर, क्यों ज़िन्दगी में वह सावन नहीं मिलता ?
गुजरती ज़िन्दगी तेरी बंदिशों के घेरे में,
आशा भरे स्वपन संजोते व्याकुल तेरी आँखों में,
क्यों ज़िन्दगी में औरत के वह स्वपन साकार नहीं होता ?
किसी इंतजार में वो तिल तिल जलती,
चाहें कांटे बिखरे राह में य़ा मंजिल उलझी,
चाहत लिए कि साथ में तेरे राह कट जायेगी,
क्यों ज़िन्दगी में मनोहर फिर तेरा वो साथ नहीं मिलता ?
हर कष्ट हर पीड़ा सहकर भी तेरे लिए,
सुख दुख में हर पल साथ तेरे लिए,
क्यों ज़िन्दगी में मनोहर वो हमसफर नहीं मिलता ?
एक प्रेम हीं तो किया था तुमसे,
तेरे प्रेम के लिए हीं तो हमने,
बगावत की थी सबसे परिवार और संसार से,
क्यों ज़िन्दगी में फिर मनोहर तेरा वो प्रेम नहीं मिलता ?
मिलता है सब कुछ यहाँ जिसकी ज़रुरत नहीं,
चाहत है तुम्हारी, तुमसे प्रेम समर्पन की जो,
क्यों ज़िन्दगी में फिर तुम्हारा वो प्रेम समर्पन नहीं मिलता ?

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