चाहकर भी मैं भूल,
नहीं सकता तुम्हें।
देख कर अनदेखा,
कर सकता नही तुम्हें।
दिलकी धड़कनों को,
कम कर सकता नहीं।
क्योंकि ये दिल है,
जो मानता ही नही।।
माना कि मुझ से,
नफरत है तुम्हें।
मेरी बातें से तुम्हें,
अब छिड़ मचाती है।
जब तक था रस,
तो पी लिया तुमने।
जब नीरस बचा तो,
छोड़ दिया तुमने।।
आजकल कि दुनियाँ का,
ये ही तो दस्तूर है।
इसलिए संभल कर,
चलना ही अक्लमंदी है।
जो भावनाओ में,
पढ़कर बहक जाओगे।
तो एक दिन अपने को,
तुम सड़क पर पाओगे।।
इसलिए छोड़ दे प्यार,
इश्क और मोहब्बत को।
अब इसकी दिलो में,
जरूरत नहीं है।
रहना हो सुकून से तो,
छोड़ दे चक्कर ये तू।
क्योंकि मोहब्बत से,
अब पेट भरता नहीं।।