ghazal tumse hi payar hoga

ग़ज़ल : तुमसे ही प्यार होगा

नासूर का तु कब तक यूं हीं शिकार होगा नासूर को भी इक दिन तुमसे ही प्यार होगा तुम पे न हक़ ज़तायें कहती हो ग़र मिरी जां तो ख्वाब में ही कम से कम इख़्तियार होगा दिखती ही वो… Read More

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ग़ज़ल : तुम सिर्फ़ मेरी

किस तरह शब-ओ-सुबह कह दूं तुम्हें तुम सिर्फ़ मेरी तुम दो तो कोई वजह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ मेरी ग़म – ए – गेसू की ये तह कह दूं तुम्हे तुम सिर्फ़ मेरी तुम ख़ुदा हो किस तरह कह… Read More

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ग़ज़ल : आदमी की औकात बताना भी ज़रूरी था

यूं कुदरत को रंग दिखाना भी ज़रूरी था ! आदमी की औकात बताना भी ज़रूरी था ! खुद को ही समझ बैठा था वो दूसरा खुदा, उसको असलियत दिखाना भी ज़रूरी था ! किस कदर सताया है इस ज़माने ने… Read More

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ग़ज़ल : यारो क्यों जान अपनी लुटाने पे तुले हो

यारो क्यों जान अपनी, लुटाने पे तुले हो क्यों अपने साथ सबको, मिटाने पे तुले हो तुम खूब जानते हो करोना की विभीषिका, फिर क्यों इसकी आफतें, बढ़ाने पे तुले हो न खेलो खेल ऐसा कि बन आये जान पर,… Read More

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ग़ज़ल : कुछ भरम तो रहने दो

मेरे ख्वाबों का यारो, कुछ भरम तो रहने दो लूट लो सब कुछ, ईमानो धरम तो रहने दो खंडहरों को देख कर न उड़ाइये मेरी खिल्ली, मुझको मेरे वजूद का, कुछ वहम तो रहने दो मोहब्बत मेरी दौलत है बस… Read More

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ग़ज़ल : तो मेरी ख़ता क्या है

जब खोदा कुआँ तूने, तो मेरी ख़ता क्या है। गिरे भी तुम खुद ही, तो मेरी ख़ता क्या है। न समझे कभी तुम मोहब्बत का मतलब, दिखाएँ लोग नफ़रत, तो मेरी ख़ता क्या है। गुलशन को रौंद कर बहुत खुश… Read More

ग़ज़ल : अब तू ग़ैर है 

मैं जानता हूँ कि अब तू ग़ैर है मुझे जीना भी तेरे बग़ैर है फिर भी मोहब्बत है तुझसे मेरे दिल को मुझसे ही बैर है बसा रखा है तुझे इन आँखों में मेरा मन ही बना मेरा दैर है… Read More

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ग़ज़ल : इश्क़ में दो पल

इश्क़  में  दो  पल  ज़रूरत  से  हां  कुछ ज़्यादा लगेंगे इस  जनम  में  गर नहीं  तो  उस जनम में  हीं  मिलेंगे लाख़   दुश्मन   हो   ज़माने   में   ज़ुदा   कैसे    करेंगे आशनाई   की  हिफ़ाज़त  जब  ख़ुदा  ख़ुद  ही रखेंगे गर जो … Read More

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ग़ज़ल : इक दिन ये माटी ही तेरी कहानी बनेगी

इक दिन ये माटी ही, तेरी कहानी बनेगी यारा तेरी फितरत ही, तेरी निशानी बनेगी भूल जायेगी तेरी शक्ल ओ सूरत ये दुनिया, बस तेरी करनी ही, सब की जुबानी बनेगी गर निकाल दे अंदर से ये हवस का जिन,… Read More

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ग़ज़ल : हम जुबां अपनी क्या चलाने लग गए

हम जुबां अपनी क्या चलाने लग गए ! लोग हक़ीक़त अपनी छुपाने लग गए ! सच सुनने की न बची हैं हिम्मत उनमें, अब राह चलते वो आँखें दिखाने लग गए ! क्या होगा वतन का कोई समझाए ज़रा, जब… Read More