banner-ghazal

हम जुबां अपनी क्या चलाने लग गए !
लोग हक़ीक़त अपनी छुपाने लग गए !

सच सुनने की न बची हैं हिम्मत उनमें,
अब राह चलते वो आँखें दिखाने लग गए !

क्या होगा वतन का कोई समझाए ज़रा,
जब साधू ही शैतान को बचाने लग गए !

बहती हैं मक्कारियां रग रग में जिसके
आज वही हमको ईमां सिखाने लग गए !

यारो क्या होगा उस घर का खुदा जाने,
अपने दीपक ही घर को जलाने लग गए !

अब भूल जाओ ‘मिश्र’ नफ़ासत फूलों की,
अब तो कांटे भी ख़ूबियां बताने लग गए !

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *