ghazal kuch bharm to rahne do

मेरे ख्वाबों का यारो, कुछ भरम तो रहने दो
लूट लो सब कुछ, ईमानो धरम तो रहने दो

खंडहरों को देख कर न उड़ाइये मेरी खिल्ली,
मुझको मेरे वजूद का, कुछ वहम तो रहने दो

मोहब्बत मेरी दौलत है बस इतना समझ लो,
इस मुफ़लिसी का क्या, कुछ अहम तो रहने दो

जानें क्यों कुचलते हैं लोग किसी के जज़्बों को,
इंसानियत के नाम पर, कुछ शरम तो रहने दो

ये वक़्त भी गुज़र जायेगा बस देखते देखते पर,
उठाने के वास्ते ये नज़र, कुछ करम तो रहने दो

किसी की इज़्ज़त से भी इतना न खेलिए “मिश्र”,
अपनी तीखी जुबान को, कुछ नरम तो रहने दो

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *