जब खोदा कुआँ तूने, तो मेरी ख़ता क्या है।
गिरे भी तुम खुद ही, तो मेरी ख़ता क्या है।
न समझे कभी तुम मोहब्बत का मतलब,
दिखाएँ लोग नफ़रत, तो मेरी ख़ता क्या है।
गुलशन को रौंद कर बहुत खुश थे तुम तो,
अब काँटों में फंस गए, तो मेरी ख़ता क्या है।
खुद ही तो पाली थी आसमां छूने की चाहत,
अब जमीं पे आ गिरे हो, तो मेरी ख़ता क्या है।
कितना सताया है तुमने न जाने कितनों को,
अब भुगता है गर तुमने, तो मेरी ख़ता क्या है।
तुमने दौलत के नशे में न समझा किसी को,
अब भटकते हो दर दर, तो मेरी ख़ता क्या है।
याद करो वो जुमले जिन्हें फेंकते थे हर तरफ,
कोई देता है अब गलियां, तो मेरी ख़ता क्या है।
तुमने साजिशों का रस्ता खुद चुना था “मिश्र”,
उसका सामने अंजाम है, तो मेरी ख़ता क्या है।