यूं कुदरत को रंग दिखाना भी ज़रूरी था !
आदमी की औकात बताना भी ज़रूरी था !
खुद को ही समझ बैठा था वो दूसरा खुदा,
उसको असलियत दिखाना भी ज़रूरी था !
किस कदर सताया है इस ज़माने ने उसको,
उसको अपने हाथ दिखाना भी ज़रूरी था !
समझ रखा था हर किसी ने ग़ुलाम अपना,
उसको वजूद अपना जताना भी ज़रूरी था !
गुरूर था कुछ को अपने हुनरो तालीम का,
उन्हें उनकी हैसियत बताना भी ज़रूरी था !
समझते रहे ‘मिश्र’ शानो-शौकत को ज़िंदगी,
उसे रोटियों की कीमत बताना भी ज़रूरी था !