नासूर का तु कब तक यूं हीं शिकार होगा
नासूर को भी इक दिन तुमसे ही प्यार होगा
तुम पे न हक़ ज़तायें कहती हो ग़र मिरी जां
तो ख्वाब में ही कम से कम इख़्तियार होगा
दिखती ही वो सितारा बिच चांद की तरह हैं
उस पे मैं क्या किसी का भी जां निसार होगा
कोई दग़ा दे भी दे तो तुम दग़ा न करना
उन के स़जा का मालिक परवरदिगार होगा
ख़ुद को जला के रोशन करता है उसको हर दिन.
सूरज का चांद से इक दिन वस्ल-ए-यार होगा.